समर्पण

मैंने सोचा, तितलियों को देखकर
बहुत बार जांचा
मैने अपने अनुभवों को
बहुत सारी  कविताओं में
बाँचा
लेकिन मिला नहीं वह
जिसकी आशा थी
अपितु मंजिल कुछ और दिखी,
जिसमें कहा गया कि
लगाव और प्रेम
समर्पण की खुली अंजुली हैं ,
पानी की स्नेह सिक्त छुवन है.
जहांअभीष्ट की गुंजाइश नहीं,
दबाव की, बंद की हुई
मुट्ठी नही, जिसमें
आज़ादी की इति श्री हो जाती है। 

Published by kamal shukla

जन्म स्थान- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश . इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. एवं एम. ए. (हिंदी) , राजर्षि टंडन विश्वविद्यालय से एम. ए. (शिक्षा शास्त्र), फरवरी 2000 से केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे स्नातकोत्तर शिक्षक के पद पर कार्यरत।

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