

विष भरे, तुम बीस थे तुम काल थे, अतिचार थे। तुम बहुत ही थे निर्दयी दुख दर्द के आगार थे। दीनता सूनी सड़क के तुम बड़े तानाशाह थे। भीत सन्नाटा तुम्हीं से, तुम महामारी दशक के। मौत का तांडव लिए चल तुम त्रासदी संग क्रूर थे। काली निशा, अब वीतरागी वापसी शुरू हो गई। दैवत्व हावी हो चला एक खुशी की लौ जो देखी। भाग जा रे दुष्ट दानव! मैं हर्ष लेकर आ गया। तू है चर्चा विगत की अब इतिहास के पन्नों में बस रह। दीखता जो बाल-सूरज मैं वही इक्कीस हूँ।
-कमल चन्द्र शुक्ल

2020 का बखूबी चरित्र चित्रण किया है सर।
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धन्यवाद सर
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