मैं इक्कीस

विष भरे, तुम बीस थे
तुम काल थे, अतिचार थे।
तुम बहुत ही थे निर्दयी
दुख दर्द के आगार थे।
दीनता सूनी सड़क के
तुम बड़े तानाशाह थे।
भीत सन्नाटा तुम्हीं से,
तुम महामारी दशक के।
मौत का तांडव लिए चल
तुम त्रासदी संग क्रूर थे।
काली निशा, अब वीतरागी
वापसी शुरू हो गई।
दैवत्व हावी हो चला
एक खुशी की लौ जो देखी।
भाग जा रे दुष्ट दानव!
मैं हर्ष लेकर आ गया।
तू है चर्चा विगत की अब
इतिहास के पन्नों में बस रह।
दीखता जो बाल-सूरज
मैं वही इक्कीस हूँ।

-कमल चन्द्र शुक्ल

Published by kamal shukla

जन्म स्थान- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश . इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. एवं एम. ए. (हिंदी) , राजर्षि टंडन विश्वविद्यालय से एम. ए. (शिक्षा शास्त्र), फरवरी 2000 से केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे स्नातकोत्तर शिक्षक के पद पर कार्यरत।

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