

क्या लिखूं कि आज यह कुर्बानियों का देश है जो देखते हो सामने, वह एक पक्ष निमेष है। नीति बदले की बढ़ी, कहते सभी विशेष हैं कौन है यह पर्व जिसमें, भारतीयता शेष है। गड़े मुर्दों को उखाड़े, आप बस आईना निहारे दूसरों पर कीच फेंके औ कहें हम साफ़ हैं। हो विरोधी संगरोधी या कहो प्रतिपक्ष का आ गई है रिक्तता, नीतिगत सब शून्य है। गजब मौका आज है, यह ईद है न मज़हबी गुजरो जरा इसके तले, यहां त्याग ही विशेष है। जब अधिक प्रिय वस्तु की, ये समर्पित ईद है तब भी दनुज बन क्रूर कपटी, करता प्रपंच अनेक है। अल्लाह को धोखे में रख, बकरे की बलि निःशेष है। मन तो प्रपंची छल भरा, निरीह पशु को पालते क्यों, तू इस्माइल न बन, अपने अहम को मारते, गुलजार जग हो जाएगा, एक बार की बस सोच है।
-कमल चन्द्र शुक्ल

Wow sir ji ☺️👍👍👏👏👏
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Mind blowing sir …sach me kafi achha poem hai sir …I really like your poem from depth of heart💓
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Charming as always….🙃🙃
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Awsm sir……. U r brilliant 😇😇
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Bahutt badiya sir ji 😍😍😍
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बढ़िया
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👍👍👍💯💯💯🔥🔥🔥
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हार्दिक आभार।
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हर बार दिल खुश कर देते हैं आप सर
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प्रोत्साहन के लिए आपका बहुत-बहुत आभार ।
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