समर्पण

क्या लिखूं कि आज यह कुर्बानियों का देश है
जो देखते हो सामने, वह एक पक्ष निमेष है। 
नीति बदले की बढ़ी, कहते सभी विशेष हैं
कौन है यह पर्व जिसमें, भारतीयता शेष है।
गड़े मुर्दों को उखाड़े, आप बस आईना निहारे
दूसरों पर कीच फेंके औ कहें हम साफ़ हैं।
हो विरोधी संगरोधी या कहो प्रतिपक्ष का
आ गई है रिक्तता, नीतिगत सब शून्य है।
गजब मौका आज है, यह ईद है न मज़हबी
गुजरो जरा इसके तले, यहां त्याग ही विशेष है।
जब अधिक प्रिय वस्तु की, ये समर्पित ईद है
तब भी दनुज बन क्रूर कपटी, करता प्रपंच अनेक है।
अल्लाह को धोखे में रख, बकरे की बलि निःशेष है।
मन तो प्रपंची छल भरा, निरीह पशु को पालते 
क्यों, तू इस्माइल न बन, अपने अहम को मारते,
गुलजार जग हो जाएगा, एक बार की बस सोच है।

-कमल चन्द्र शुक्ल

Published by kamal shukla

जन्म स्थान- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश . इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. एवं एम. ए. (हिंदी) , राजर्षि टंडन विश्वविद्यालय से एम. ए. (शिक्षा शास्त्र), फरवरी 2000 से केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे स्नातकोत्तर शिक्षक के पद पर कार्यरत।

10 thoughts on “समर्पण

Leave a reply to kamal72chandra Cancel reply