
जाएं कहां हम दोस्त इन फरेबियों को छोड़कर, हर शहर गली कूंचों में इनकी जमात बैठी है। मानस महाभारत पढ़ें हम धर्म, कर्म की बात सोचें नवल प्रभात के लिए, कर्तव्य की हर बाट जांचें पर वो हर जगह हैं दीखते | शक्ति की आंधी लिए अल्पकालिक सुख की खातिर। पद, प्रतिष्ठा, शान, शौकत हर तरफ कुहराम करते। बेजोड़ हैं बेईमान ए सत्ता औे शक्ति प्रमुख के, ये बड़े नमक हलाल हैं। खुद की सुविधा के लिए जो भी करें सब खैर है, और छोटा जो करे तो गैर कानूनी दिखे है। साध्य-साधन के औचित्य का है खेल बड़ा ही जादुई, वो जीतते तो ठीक है जो हारते अन्याय है। जनतंत्र की आधी इमारत इस भीड़ में घुटनों तले, जय हो रही जमात की शेष जनता क्यों जले।
-कमल चंद्र शुक्ल

अति उत्तम
LikeLike
अति उत्तम
LikeLike
Superb sir 👍🙏
LikeLike
Fantastic
LikeLike
Badhiya sir
LikeLike
Badhiya 👍
LikeLike