न्याय की आस

जाएं कहां हम दोस्त
इन फरेबियों को छोड़कर,
हर शहर गली कूंचों में
इनकी जमात बैठी है।
मानस महाभारत पढ़ें हम
धर्म, कर्म की बात सोचें
नवल प्रभात के लिए,
कर्तव्य की हर बाट जांचें
पर  वो  हर जगह  हैं दीखते |
शक्ति की आंधी लिए
अल्पकालिक सुख की खातिर।
पद, प्रतिष्ठा, शान, शौकत
हर तरफ कुहराम करते।
बेजोड़ हैं बेईमान ए
सत्ता औे शक्ति प्रमुख के,
ये बड़े नमक हलाल हैं।
खुद की सुविधा के लिए
जो भी करें सब खैर है,
और छोटा जो करे
तो गैर कानूनी दिखे है।
साध्य-साधन के औचित्य का
है खेल बड़ा ही जादुई,
वो जीतते तो ठीक है
जो हारते अन्याय है।
जनतंत्र की आधी इमारत
इस भीड़ में घुटनों तले,
जय हो रही जमात की
शेष जनता क्यों जले।

-कमल चंद्र शुक्ल

Published by kamal shukla

जन्म स्थान- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश . इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. एवं एम. ए. (हिंदी) , राजर्षि टंडन विश्वविद्यालय से एम. ए. (शिक्षा शास्त्र), फरवरी 2000 से केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे स्नातकोत्तर शिक्षक के पद पर कार्यरत।

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