क्या गजब का देश है यह
बस ,अजब का देश है।
चूमती है आसमां
गगनभेदी घोष स्वर
मैं खड़ा चुपचाप सुनता
विश्व दैव का रुष्ट गर्जन
अब यहां पर नाग सारे
अनीति अव्यवस्था के अखाड़े
सम्मान करना न्याय का जो
जन्म से ही नहीं जाने
देश के जनादेश का अद्वितीय नेता
अनवरत अग्रसर है जो बनने को विश्व अगुआ
सब सार्क देश सहर्ष माने
पर पाक तो नापाक बिगवा
अब हरे होकर बाग भी
अर्जित वसीयत त्याग दी
पत्थरों के बल गोलियों की
हद क्रूरता की पार की
शब्द जब भी चुप हो जाए
मौन ही तो बोलता है ।
सप्त दस वर्षों की बेड़ी
है वही जो काटता है।
सहन होता है नहीं यह
निर्गुणी को देखकर
पंथ धरम की ओट में
धुंधलके वह फिर बनाता
सावधान गणमान्य जन _गण
आत्म _श्लाघा छोड़ दो
इक नया मानक बनाओ
समत्व योग की बात कर लो___
-कमल चन्द्र शुक्ल

Sir your kavita is so beautiful and nice .
Sir ap to kavita lakhak banne vale ho
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Bahut sundar kavita hai
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Bahut badia
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महोदय, राजनीति एक ऐसा हमाम है जिसके अंदर सभी निर्वस्त्र होते हैं!
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🙏
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