
निकल पड़े हैं लोगों को लुभाने शुरू हो चुकी है कक्षा राजनीति की, पाठ पढ़ाने की हर कोई नेता एक दूसरे की पीढ़ी दर पीढ़ी की क्षुद्र कालिख को , पार कर तूफान से आई नाव में जर्जरता एवम जीर्णता को असफलता के अवतल दर्पण, माइक्रोस्कोप से लोगों को दिखाने में लगा है । मर्यादाओं को तार तार कर सब दूसरे को नैतिक हीन अधः पतित बताने में लग गए है और अपनी जुगनू सी की गई उजास को सूरज सा बता रहे हैं। वक्त आ गया है यह जानने और बताने का कि कौन बहला फुसला रहा है और कौन हमारा है सच्चा हितैषी हमें अब करना है निश्चय बनना है विवेकी, बड़े बड़े भाषणों में, चाइना बाज़ार में खोना नहीं है। हंस जैसी चातुरी क्षमता लिए दूध और पानी को अलग थलग करना है। हमें बखूबी मालूम है अपनी मंजिल और उनकी फितरते। ख़्वाब और खयालात को लिए घर का दीप जलाकर, मस्जिद में दिया जलाने की सोच को साकार करना है। मृग मरीचिका को छोड़ अपने क्षेत्र को रोशन करना है। तभी होगी सफल मतों की यज्ञ आहुति और सफल चुनाव की इति ।
– कमल चन्द्र शुक्ल

बेहद सुंदर, प्रेरणादायक कविता! समाज को बदलने का शक्तिशाली संदेश। आपकी अगली कविता का इंतजार।
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Adbhut Apratim🙏
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बहुत ही सुंदर लेखन 😊❤️
अदभुत झलकियां
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