कुछ पल

आओ आज कुछ पल बिताएँ।
अपने लिए कुछ पल चुराएँ।

सूरज की आँच को,
ढलती साँझ को,
कुछ पल निहारें।
आओ आज कुछ पल बिताएँ।
अपने लिए कुछ पल चुराएँ।

फागुन के फाग को,
सावन के राग को,
कुछ पल गुनगुनाएँ।
आओ आज कुछ पल बिताएँ।
अपने लिए कुछ पल चुराएँ।

ढोलक की थाप का,
घुघरूं की झंकार का,
कुछ लुत्फ उठाएँ।
आओ आज कुछ पल बिताएँ।
अपने लिए कुछ पल चुराएँ।

कोयल की कूक को,
पपीहे की पीक को,
अपने प्रियतम को सुनाएँ।
आओ आज कुछ पल बिताएँ।
अपने लिए कुछ पल चुराएँ।

पक्षियों के कलरव से,
भौंरे की गुनगुन से,
सबका मन बहलाएँ।
आओ आज कुछ पल बिताएँ।
अपने लिए कुछ पल चुराएँ।

सरिता की कल-कल में,
झरने की झर-झर में,
चलो फिर से नहाएँ। 
आओ आज कुछ पल बिताएँ।
अपने लिए कुछ पल चुराएँ।

खेतों औ खलिहानों में,
ऊँचे-ऊँचे मचानों में,
उछले-कूदे मौज उड़ाएँ। 
आओ आज कुछ पल बिताएँ।
अपने लिए कुछ पल चुराएँ।

गिल्ली औ डंडे का,
पतंग औ माझे का,
नीलगगन में पेंच लड़ाएँ।
आओ आज कुछ पल बिताएँ।
अपने लिए कुछ पल चुराएँ।

-स्मिता देवी शुक्ला

Published by kamal shukla

जन्म स्थान- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश . इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. एवं एम. ए. (हिंदी) , राजर्षि टंडन विश्वविद्यालय से एम. ए. (शिक्षा शास्त्र), फरवरी 2000 से केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे स्नातकोत्तर शिक्षक के पद पर कार्यरत।

One thought on “कुछ पल

Leave a reply to Anonymous Cancel reply