आओ आज कुछ पल बिताएँ। अपने लिए कुछ पल चुराएँ। सूरज की आँच को, ढलती साँझ को, कुछ पल निहारें। आओ आज कुछ पल बिताएँ। अपने लिए कुछ पल चुराएँ। फागुन के फाग को, सावन के राग को, कुछ पल गुनगुनाएँ। आओ आज कुछ पल बिताएँ। अपने लिए कुछ पल चुराएँ। ढोलक की थाप का, घुघरूं की झंकार का, कुछ लुत्फ उठाएँ। आओ आज कुछ पल बिताएँ। अपने लिए कुछ पल चुराएँ। कोयल की कूक को, पपीहे की पीक को, अपने प्रियतम को सुनाएँ। आओ आज कुछ पल बिताएँ। अपने लिए कुछ पल चुराएँ। पक्षियों के कलरव से, भौंरे की गुनगुन से, सबका मन बहलाएँ। आओ आज कुछ पल बिताएँ। अपने लिए कुछ पल चुराएँ। सरिता की कल-कल में, झरने की झर-झर में, चलो फिर से नहाएँ। आओ आज कुछ पल बिताएँ। अपने लिए कुछ पल चुराएँ। खेतों औ खलिहानों में, ऊँचे-ऊँचे मचानों में, उछले-कूदे मौज उड़ाएँ। आओ आज कुछ पल बिताएँ। अपने लिए कुछ पल चुराएँ। गिल्ली औ डंडे का, पतंग औ माझे का, नीलगगन में पेंच लड़ाएँ। आओ आज कुछ पल बिताएँ। अपने लिए कुछ पल चुराएँ।
-स्मिता देवी शुक्ला

शोभनम अति शोभनाम
LikeLiked by 1 person