आखिर कब ?

कोई नहीं समझता
हमारी बात (विद्यार्थी)
एक गेंद जैसी हमारी स्थिति
पिछली सदी जैसी
आज भी बनी हुई है
न जाने कितने शिक्षा आयोग
और अनेक पाठ्यचर्या व संशोधन शिक्षा में,
बाल केंद्रिकता के लिए आए और गए ।
लेकिन ढाक के वही तीन पात
सतत कायम रहे ।
नई शिक्षा नीति हो या
परीक्षा पे चर्चा
अंततः टीचर और अभिभावक के
बीच फाइनल किक के लिए
दो पाटों के बीच
पिसता तो आज भी मैं ही हूं।
अभिभावकों के अपने इच्छित
वांछित भविष्य का
रिपोर्ट कार्ड लेने के वास्ते
विद्यालय में दाखिले मिलते ही
शिक्षकों के चेहरे कभी खिले तो
कभी विद्रूप बने।
अनुरूप व्यवहार, आशातीत परिणाम
के अभाव में, शिकायतें
घरवालों को कुछ न कुछ
गोष्ठी में शिक्षकों की।

अफ़सोस ! आज भी कोई जानने की
कोशिश भी नहीं करता कि
जिस गेंद को इधर से उधर भेजा
जा रहा है
वो फुटबाल की है या वालीबाल की
क्रिकेट की है या टेनिस की
बस एक जिद भरपूर है
सभी गेंदों से एक जैसे परिणाम
की मिलने की।

-कमल चन्द्र शुक्ल

Published by kamal shukla

जन्म स्थान- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश . इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. एवं एम. ए. (हिंदी) , राजर्षि टंडन विश्वविद्यालय से एम. ए. (शिक्षा शास्त्र), फरवरी 2000 से केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे स्नातकोत्तर शिक्षक के पद पर कार्यरत।

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