नन्ही गुड़िया

मैं बाबा की नन्ही गुड़िया,
लगती जैसे जादू की पुड़िया।
उनकी हूँ मैं राजदुलारी,
जैसे फूलों से महकी फुलवारी।
दिन भर उनके संग मैं खेलूँ,
भागूँ, दौडूं, कंधे पर चढ़ लूँ।
ले लेते वो मेरी सारी बलैया,
संग नाचे वो ता-ता थैया।
थाम के उँगली चलना सीखा,
जीने का उनसे मिला सलीका।
जान से उनकी मैं हूँ प्यारी,
घर-आँगन में चहकूँ, मैं सुकुमारी।
आशीष तेरा मैं नित दिन चाहूँ,
जिस पर अपना सर्वस्व लुटाऊँ।
हर जन्म तुम्हारी सुता बनूँ मैं,
चाह ईश से यही करूँ मैं।

-स्मिता देवी शुक्ला

Published by kamal shukla

जन्म स्थान- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश . इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. एवं एम. ए. (हिंदी) , राजर्षि टंडन विश्वविद्यालय से एम. ए. (शिक्षा शास्त्र), फरवरी 2000 से केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे स्नातकोत्तर शिक्षक के पद पर कार्यरत।

4 thoughts on “नन्ही गुड़िया

  1. बचपन की ओर आकृष्ट करती हुई अप्रतिम रचना
    सराहनीय

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