दक्षिणा

अनंत फलों को देने वाली
पवित्र बुद्ध पूर्णिमा पर
सत्तारूढ़ मंत्री महोदय
विष्णु भगवान की कथा के दौरान
शास्त्रीय पंडित जी से
उलझ गए और
बार बार हर मंत्र पर
दक्षिणा चढ़ाने पर जोर देने से
भड़क गए।
बोले, एक बार दक्षिणा देने के बाद
फिर क्यों मांगते हो
कुछ शर्म भी करो, एक ही सोर्स से
क्यों पुनः लेने की ज़िद करते हो।
विनत भाव से शास्त्री पुरोहित
बेझिझक शालीनता से बोला।

यजमान ! कभी सरकारी या प्राइवेट
नौकरी वालों से मिले हो
जानते हो, वेतन से टैक्स पहले कटकर
आता है।
फिर उसी बचे वेतन से खरीदी कार पर जी एस टी
कार पर रोड टैक्स, ड्राइवर और सवारियों
के लिए इन्शुरन्स टैक्स

ईंधन फ्यूल पर,सर्विसिंग और सामान पर टैक्स, लेबर चार्ज पर टैक्स
और तो और अपने टैक्स से बनी
सड़क, हाइवे पर टोल टैक्स।
सच बताओ। कभी तुमने आम आदमी को इन सब देय करों पर झुंझलाते देखा ?
यकीनन नहीं ।
सूरज सा बनकर समंदर से
कर लेना सीखो
ताकि किसी की पीड़ा द्रवीभूत न हो
तभी रामराज की कल्पना
चरितार्थ होगी।

-कमल चन्द्र शुक्ल

Published by kamal shukla

जन्म स्थान- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश . इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. एवं एम. ए. (हिंदी) , राजर्षि टंडन विश्वविद्यालय से एम. ए. (शिक्षा शास्त्र), फरवरी 2000 से केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे स्नातकोत्तर शिक्षक के पद पर कार्यरत।

6 thoughts on “दक्षिणा

  1. Irony of the present Taxation…….same with the pension…..an employee who serves for entire life time is denied wheraas our politicians relish..double,triple and sometime even more than 3 pensions for a tenure of mere 5 years……..

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