

दीप या अभिमन्यु हो संघर्ष चारों ओर है युग युग अंधेरा घेरता संघर्ष तो घनघोर है । लड़ना अकेले स्वयं है कोई भी न साथ में आएगा सब आत्म संकट से घिरे सहारा न कोई दे पाएगा । चल रहा है जो युद्ध भीतरी घिरा है जो विकारों से नहीं है शस्त्र साथ में निहत्था निर्विकार से । लोग चाहे जो कहें इतिहास हम न भूलते आज के अभिमन्यु में अब है और कौशल दीखते । समर संग ले धैर्य, साहस चातुर्य पूरित तुल पड़ा कूटनीति के कृपाण से कोई न छल करे खड़ा। कृपाचार्य, द्रोण, भीष्म उसे न कोई झुका सके अब कौशल प्रधान दीप है अदृश्य लैंप रूप के। संभलो सुयोधन शल्य शकुनि अब कुटिल नीति समाप्त है धृतराष्ट्र आँखें खोल देखो अभिनव पराक्रम व्याप्त है।
-कमल चन्द्र शुक्ल

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