नवदीप

दीप या अभिमन्यु हो
संघर्ष चारों ओर है
युग युग अंधेरा घेरता
संघर्ष तो घनघोर है ।
लड़ना अकेले स्वयं है
कोई भी न साथ में आएगा
सब आत्म संकट से घिरे
सहारा न कोई दे पाएगा ।
चल रहा है जो युद्ध भीतरी
घिरा है जो विकारों से
नहीं है शस्त्र साथ में
निहत्था निर्विकार से ।
लोग चाहे जो कहें
इतिहास हम न भूलते
आज के अभिमन्यु में अब
है और कौशल दीखते ।
समर संग ले धैर्य, साहस
चातुर्य पूरित तुल पड़ा
कूटनीति के कृपाण से
कोई न छल करे खड़ा।
कृपाचार्य, द्रोण, भीष्म
उसे न कोई झुका सके
अब कौशल प्रधान दीप है
अदृश्य लैंप रूप के।
संभलो सुयोधन शल्य शकुनि
अब कुटिल नीति समाप्त है
धृतराष्ट्र आँखें खोल देखो
अभिनव पराक्रम व्याप्त है।

-कमल चन्द्र शुक्ल

Published by kamal shukla

जन्म स्थान- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश . इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. एवं एम. ए. (हिंदी) , राजर्षि टंडन विश्वविद्यालय से एम. ए. (शिक्षा शास्त्र), फरवरी 2000 से केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे स्नातकोत्तर शिक्षक के पद पर कार्यरत।

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