
जब कोरोना की दूसरी पीढ़ी ने देश पर नादिरशाही हमला बोला तो सत्ता के प्रतापी लोगों ने बोर्ड परीक्षा रद्द कर डाला बात नेट की दुनिया में फोटान सी फैल गई बहुमत की जनता ने मन की मुराद पाई। मेरे मानस में तब से घोषणा के दिन से, मैं अपने मन को कितना भी समझा लूं अक्सर एक बात उठती है एक आग जलती है । देश-विदेश की मीटिंग में शिक्षा चर्चा हर बार भले हो पर, जाने क्यों बोर्ड परीक्षा हर साल मुकम्मल होती है। ऊपर की ऊंची कुर्सी वाले, विगत बोर्ड की पद्धति से बेहतर कुछ नहीं मानते खरी पढ़ाई उनकी ही थी बात भले साइबर से बताते। देश में दिखता लोकतंत्र जब मनमानी सब करे तंत्र क्यों जन्मभूमि जब राम-कृष्ण की मिले मान्यता हिटलर को क्यों। सौ वर्षों में समाज, साहित्य और सिनेमा तो बदल गया लेकिन शिक्षा का स्तर परंपरावादी सोच में डूबता बेदम होता चला गया। बिना बोर्ड की मुहर लगे कोई काबिल कैसे बन पाया।। शिक्षा की नीतियां, मसौदे सतत एवं व्यापक मूल्यांकन सोच धरी की धरी रह गईं । और देश की शिक्षा व्यवस्था दुनिया के रसातल में पहुंच गई। बोर्ड परीक्षा का भय दिखाकर खेलना छोड़ो, बच्चों के मन से बाल केंद्रित शिक्षा का ढोंग पीटकर स्व वर्चस्व की श्रेष्ठता छोड़ो कल से नौनिहालों की उड़ान के लिए बोर्ड का हौवा, भय भगाओ जब रेस है रोजगार की जो प्रतियोगिता के बाद ही, तो बोर्ड करवाने का क्यों झूठ का झमेला है। ग्लोबल जल सदृश ही बच्चों को खुशरंग होने दो जंग जाहिल दूर होगी भूमि उर्वर बन जाने दो।
सत्तासीन मोदी जी के नेतृत्व ने
-कमल चन्द्र शुक्ल
