


क्या उल्लास के दिन थे वे जब हमें नए वर्ष का नहीं, 26 जनवरी के आने का बेसब्री से इंतजार होता था। कागज़ पर झंडे का रंगना और बांस की डंडियों में फिट कराना। हर के पास तिरंगा स्वतः होना कपड़ों को (ड्रेस नहीं) साफ करके लोटे के पेंदे से प्रेस करा कर पहनना क्या गज़ब उत्साह था त्योहार में। प्रभात फेरी का गांव गली से ठिठुरती ठंढ में तड़के सूर्योदय के संग गुजरना सिंह की दहाड़ सी मार्च पास्ट वीर तुम बढ़े चलो का गीत भारतमाता की जय के साथ नायक अब्दुल हमीद की याद, सुपर ट्रेंड पी. टी. टीचर का तेजस सदृश अचूक निर्देशन किसानों द्वारा स्कूल-दल का गुड़, रस, चने से स्वागत आज के पांच सितारा को फेल कर देता है, वह सब दिखावे में खो गया है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों की बेमिसाल प्रस्तुतियां आज के चकाचौंध के कार्यक्रमों पर रश्मिरथी के कर्ण के तीर सी हावी हो जाती है। लेकिन मेरे दोस्त! आज कृत्रिमता जीत गई हैं कर्म की, काया की और मन की, तभी तो लोग सब, सत्ता की हाँ में हाँ मिलाने को तैयार हैं। मुबारक हो तुम्हे यह तेज रफ्तार वाली अन्नदाता के अंतर्तम को झकझोरती राफेल का गणतंत्र। मुझे तो वही पसंद है सुतंत्र हौले हौले, गांधी का जनतंत्र पता नहीं कहीं वह खो गया है तलाश जारी है।
-कमल चंद्र शुक्ल

वाह! क्या बात है……………… आधुनिकता के साथ स्वाभाविकता की झलक…….शत शत नमन..
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