


सुहानी स्मृतियों में स्कूल घिरा है मुझे आज वो नज़र में तिरा है। यह मत पूछना मुझसे कि क्या संज्ञा है आपके स्कूल की, क्योंकि नाम जान लेने से लोग बाल की खाल निकालते हैं, और यह मैं होने न दूँ। लोग समझदार ज्यादा हो गए हैं, तभी तो बड़ों की पगड़ी भी उछालने में अब देरी न कर सोशल मीडिया में आधुनिकता का बैज़ पाते हैं। स्कूल मेरा बड़ा ही केयरिंग था यक़ीनन हर रिश्ते से ऊंचा जिसका मुझे पहले अहसास न था, आपको भी न रहा होगा अकिंचन। शिक्षक अहैतुक भाव से, कक्षा हो या खेल का मैदान इंटरवल हो या प्रार्थना सभा बाहरी उत्सव हों या वार्षिक जलसा गृहकार्य की कड़ी जांच हो या परीक्षा हॉल की ड्यूटी सब जगह हमारी भलाई के लिए सक्षम सूक्ष्म दृष्टि लिए, घुमावदार सीढियों पर, मेरे शिक्षक खड़े हैं । नंबर काटकर, गलती का अहसास कराकर, बढ़वाने के लिए स्वयं ताकि प्रबुद्ध नागरिक राष्ट्र को मिल सकें। गिलोय जैसी विशेषता लिए विविध भूमिकाओं के सांचों वाले लोग अब न हैं। अब तो जीवन में मैं स्वतंत्र कर्ता, भोक्ता हूँ तो खतरे भी अनंत हैं सबका उत्तरदायी मैं हूँ कोई रिटेक नहीं, सुधार नहीं, कोई सद्भाव नहीं अब । दुनिया के शेष समर में अनिश्चितताओं के बादल हैं। ओ मेरे स्कूल ! तुमने अब भेज दिया है मुझे जीवन के उत्कट संघर्ष में तो वैसी ही शक्ति दो, दृष्टि और वरदान, ताकि तुम्हें मैं गौरवान्वित कर सकूं बताए आदर्शों पर चलकर।
-कमल चन्द्र शुक्ल

School days are the best ones😊…….Nice poem👌👌
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Awesome sir
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