झंकृत कर दो मन की वीणा,
आशा के नव दीप जलाओ ।
भव बंधन तोड़ के सारे,
ज्ञान की अविरल जोत जलाओ ।
जाति-पाति का वैर करो न तुम,
मन के सारे मैल मिटाओ।
अपना और पराया न कोई,
ये मर्म जन-जन तक पहुँचाओ।
संवर्धित कर मानवता को,
सबके मन में खुशहाली लाओ।
-स्मिता देवी शुक्ला
Published by kamal shukla
जन्म स्थान- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश . इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. एवं एम. ए. (हिंदी) , राजर्षि टंडन विश्वविद्यालय से एम. ए. (शिक्षा शास्त्र),
फरवरी 2000 से केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे स्नातकोत्तर शिक्षक के पद पर कार्यरत।
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