

गजब की है ये मायानगरी अजीब है संस्कृति यहां की अब लेकिन मैं अब क्यों कहा यहां ? बताएंगे किसी और दिन। यही न कि सुअर और मनुष्य समान रूप से तथाकथित इंद्रिय सुख के लिए बढ़ते हैं। मुझे तो लगता है कि हर व्यक्ति वर्जनाओं के साथ लेकिन चुपके से भीतर की उसकी आत्मा बेहद कमजोर असहाय है। तभी तो वह सहारा लेता समूह का और कहता बेधड़क ,बेमिसाल कि मैं हूँ यौन वर्जनाओं का पुंज। सारे विकास के रास्ते मेरे लिए ही हैं यकीनन अंततः। वासना तू नित नई चिर नवीन है, नव युवा तुझमें ही होकर आती । अंधेरे की प्रीति-कलह की कागजी दुनियादारी और दोस्ती। मैं हमेशा यही सोचता हूँ की तू वासना ! कितनी शक्तिमान और अमरता की प्रतिमान है प्यार तो पानी भरता है तुम्हारे यहां घुटने टेक कर, जीवन की भीख मांगता है, मुझे बता तू विश्वव्याप्त ! क्या तेरा भी होता है, आप्त प्रलय, प्रवंचना की प्रीति। तेरी मैंने जान लिया है, इसलिए हे नियति चक्र मुझको बचाना, मैं नही पाना चाहता उस सुरा की गागर को जहाँ से दिशा की रोशनी , प्रेम की झूठी झंझटें अंधेरे में वीरान अगणित बड़े बड़े नामचीनों को, आनंद से दूर,पशुता परक क्षणिकसुख के लिए क्रमशः गुमराह करती है।
-कमल चन्द्र शुक्ल

अच्छा लिख रहे हो आप तो ।
LikeLike
:-O
(◍•ᴗ•◍)❤
LikeLike
Nice Poem Sir
LikeLike