शुभारंभ

नई सदी की नई रीति है
शिक्षा की अब नई नीति है।
लागू होगी जल्दी है कब ?
लेकिन आस लगी है जो अब।
बीच डगर छूटी जो कक्षा
सर्टिफिकेट मिलेगा, शिक्षा।
करी पढ़ाई जाए न खाली
होगी जीवन में न बेहाली।
बुनियादी लेवल है आली
कदम कदम पर करो क़व्वाली।
चार चरण का शिक्षा-खंभ
चंपा पढ़ना करे आरंभ ।
खत्म हुआ दुर्दिन का दम्भ
हो जब नव शिक्षा का प्रारम्भ।
भाषा के दिन वापस आए
जीवन जीना ए सिखलाए।
भारत की स्वर्णिम भाषाएं
लोगों के चेहरे खिल जाएं।
कोई भी पढ़ सके विषय
संकाय विभेदक, बात व्यर्थ ।
कक्षा, जिसकी जितनी रुचि हो
पाठों में सर्जन शुचिता हो।
आदर्शवाद की बात गई
असली आई, इक सोच नई ।
जिसकी जितनी है आवश्यकता
शिक्षण की वैसी व्यापकता।
ड्राप आउट का केस न होगा
कोई भी अब फेल न होगा ।
कब है शुरू, है कहाँ ख़तम
न कोई करेगा नाक में दम ।
अब साल गए का खेल न होगा
हंसी खेल में अधिगम होगा ।
नैराश्यवाद जग से भागेगा
जीवन सबका सफल बनेगा।
इतनी अच्छी नई नीति है
प्रीति की जितनी रीति नई है ।
पटाक्षेप तो होने दो
नया सत्र तो आने दो ।
महादंश को जाने दो
नव प्रभात को आने दो।
संचालक देश का नागर है
अच्छे दिन का सागर है ।

-कमल चन्द्र शुक्ला

Published by kamal shukla

जन्म स्थान- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश . इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. एवं एम. ए. (हिंदी) , राजर्षि टंडन विश्वविद्यालय से एम. ए. (शिक्षा शास्त्र), फरवरी 2000 से केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे स्नातकोत्तर शिक्षक के पद पर कार्यरत।

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