विकास पथ

ये मर्मभेदी मीडिया तो सनसनी आश्वस्त है
जनतंत्र के इस पिलर की, 
महिमा निरत अभिव्यक्त है।
वाणी कलम के ये सिपाही, जाग्रत समाज के दूत हैं,
धन्य हम इनको कहें, प्रत्यक्ष न्याय की आंख हैं।

भूमि के मालिक यही, अन्नदाता हैं हमारे
बिना संचित वैभवों के, किसान सत्यनिष्ठ है
भले कोई न बखाने, ये स्वयं में संतुष्ट हैं।
कर्म की ध्वज धुरी धारे,भाग्य सत्ता अब सँवारे
सीमा पे संगीन संग, है मौत को ललकारता
सिर पे कफ़न वो धार कर, 
अपना धरम है निबाहता,
धूप हो या छांव कि, चाहे प्रकृति का प्रकोप हो
हो रिटायर पास या, आया नया रंगरूट हो।
अमोघ शर की क्षिप्रता, शब्द भेदी बाण-सी
अरि ख़ाक में मिल जाएगा, पत्तियों के राख- सी।

आज नेता गण भी भले, आरोप को हैं झेलते
ज्ञान की होती महत्ता, अज्ञान भी जब पहुंचते
अब जरा तुम्हीं बताओ, आत्मज्ञान से ही बूझो
बिन अंधेरे के कहीं, हैं उजाला पास आता
बिना विरोध के कहीं, विकास कभी न हो सका
धर्म, शिक्षा, नीति कारण, मुकुट भी तो बहुत भटका
पिछला तिहत्तर वर्ष बीता, देश आगे बढ़ रहा है
कुछ पुराने जन किये कुछ और आगे कर रहे।
अभिमान मत कर मनुज न कह, 
सब कुछ तो बस हमने किया,
जिसने कभी ऐसा कहा, वो आज यहाँ अवशेष हैं।
निःस्वार्थ कर्ता बन धरा का, 
धरती सिमटती चल चलो,
एकला तुम न चलो ,सबको समेट के तुम चलो।

-कमल चंद्र शुक्ल

Published by kamal shukla

जन्म स्थान- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश . इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. एवं एम. ए. (हिंदी) , राजर्षि टंडन विश्वविद्यालय से एम. ए. (शिक्षा शास्त्र), फरवरी 2000 से केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे स्नातकोत्तर शिक्षक के पद पर कार्यरत।

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