
ऑनलाइन क्लास में, भारत की खोज पढ़ाते-बुद्ध एवं अशोक चंद्रगुप्त और चाणक्य को समझते सहज स्मृति हो आई गुरु महिमा और नैतिकता की। मन तीन दशक के इतिहास की ओर भाग गया। पूरी पाठशाला में दो कमरे जिसमें, रिसती छत के नीचे स्कूल रजिस्टर, कीमती सामान। चाभी गुरुजी की जनेऊ में बंधी संसाधन बहुत कम लेकिन हमारे लिए बहुत बड़ा तिलिस्मी कक्ष था वो। पेड़ के नीचे लगी कक्षाएं खाद की बोरी पर बैठे, भाग्य पर इतराते, खुशहाल बच्चे नैतिक शिक्षा बिना पढ़ाए बहुत उत्कृष्ट, बेमिसाल और पाठ्यक्रम सत्ता-विरत लाजबाब देश पे मर मिटने की कहानियों मे एक तरफ वीर अब्दुल हमीद तो दूसरी तरफ डाकू अंगुलिमाल, हृदय परिवर्तन कराती बुद्ध का संदेश उन किताबों में जुम्मन का दर्द है तो सोती सुंदरी जैसी फेंटेसी भी, लेकिन नही है वहां, ऊंची नीची जाति नहीं है हिन्दू मुसलमां की विभेदक रेखा। आज से ज्यादा सम्मान से हसन मास्टर, पंडितजी के घर तो रामलाल ठाकुरन में बिना रिजर्वेशन, उदात्त सम्मान पाते हैं गुरु का । आज के शिक्षण में न सम्मान है न शांति जो कि गतिमान दुनिया के मूल इलेक्ट्रान की स्थायी प्रवृत्ति है। कभी तो मानोगे मेरी बात आज की शिक्षा तो बस नैतिक मूल्यों का मीडिया मंच है, और सत्ता व विपक्ष के गलियारे में विकास के छलावे का प्रपंच है।
-कमल चन्द्र शुक्ल

Such a masterpiece you’ve created👌👌👌hats off to you…👏👏👏👏
LikeLike
कविता में सुन्दरता कवि के हाथों ही आती हैं
अति सुन्दर कविता
keep it up
LikeLike
अति सुन्दर है
LikeLike
अति सुंदर रचना
LikeLike
अच्छी कविता है
LikeLike
👍❤️✌️👌🙏
LikeLike
ख़ूबसूरत सर
LikeLike