मेरे मन

ओ मेरे आदर्शवादी मन,
तुम  हैरान मत होना ।
अपनी लघु विस्तृत दृष्टि से,
दुनिया की थाह मत लेना ।
ऊंची उड़ान की खातिर
हंस जैसा धैर्य, चील सी दृष्टि
की तुम्हें जरूरत है।
विधाता के खेल में,
नायकों का अवतरण सदैव
अकस्मात ही, अनापेक्षित होता है।
क्या तुमने देखा नहीं जब
माया के देश में, लॉकडाउन के वेश में
बड़े बड़े धनपति छिपे !
निहारते, मुंह ताक रहे थे
सरकारी सहायता की मशीनरी को
मीडिया की डिजिटल जनसभा में,
जी भर कर कोस रहे थे।
तभी सोनू जैसा सितारा, 
प्रवासी मज़दूरों की वापसी केआसमां में छा जाता है।
कोरोना इतिहास के पन्नों में विद्युत की भांति
अपने को दर्ज़ कर जाता है।
धरे के धरे रह जाते हैं लोगों के
आदर्शों के झूंठे प्रतिमान
और दिखला देता है युवा लोगों को
जीवन की शुचिता का जहान।

-कमल चंद्र शुक्ल

Published by kamal shukla

जन्म स्थान- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश . इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. एवं एम. ए. (हिंदी) , राजर्षि टंडन विश्वविद्यालय से एम. ए. (शिक्षा शास्त्र), फरवरी 2000 से केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे स्नातकोत्तर शिक्षक के पद पर कार्यरत।

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