चल रहा चक्र जब बंदी का मंदी तुम न ला देना पुरुषार्थ करो आगे बढ़कर रथ को तुम रुकने न देना प्रतिकूल परिस्थिति में ही तो संग्राम बड़े सब लड़े गए मन में चलते संघर्षों से विजई बन कितने लक्ष्य नए। आलस छोड़ो ,बन कर्मवीर जन संवर्धन का अग्र बनो सरकारी सुविधा धन ले सहाय शत-शत लोगों का भरण करो रुके पलायन मजदूरों का काम नरेगा भी करना वात्सल्य भरी दृढ़ संकल्पित ज्योति पर कविता लिखा करो। सब समर्थ सुविधा जन गण राम का खेत राम का होय। कोटि कोटि मन करें नमन जब देसी पूंजी बढ़त जाय।


-कमल चन्द्र शुक्ल

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