संकल्प

चल रहा चक्र जब बंदी का
मंदी  तुम न ला देना
पुरुषार्थ करो आगे बढ़कर
रथ को तुम रुकने न देना
प्रतिकूल परिस्थिति में ही तो
संग्राम बड़े सब लड़े गए
मन में चलते संघर्षों से
विजई बन कितने लक्ष्य नए।
आलस छोड़ो ,बन कर्मवीर
जन संवर्धन का अग्र बनो
सरकारी सुविधा धन ले सहाय
शत-शत लोगों का भरण करो  
रुके पलायन मजदूरों का
काम नरेगा भी करना
वात्सल्य भरी दृढ़ संकल्पित
ज्योति पर कविता लिखा करो।
सब समर्थ सुविधा जन गण
राम का खेत राम का होय।
कोटि कोटि मन करें नमन 
जब देसी पूंजी बढ़त जाय।

-कमल चन्द्र शुक्ल

Published by kamal shukla

जन्म स्थान- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश . इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. एवं एम. ए. (हिंदी) , राजर्षि टंडन विश्वविद्यालय से एम. ए. (शिक्षा शास्त्र), फरवरी 2000 से केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे स्नातकोत्तर शिक्षक के पद पर कार्यरत।

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