मैं शिक्षक…..

मैं शिक्षक हूँ 
मैं लोगों की समझ में, 
और लोग मेरी समझ में
एक दूसरे से एकदम परे हैं।
अभी कुछ महीनों पहले की बात
लॉकडाउन होने के पूर्व,
लोग कहते अनमने से
शिक्षक करते क्या हैं ?
वही चार किताबें हर साल,
हमें पूरे खानदान को पढ़ाते आए हैं।
असली दिमागी काम करते तकनीक वाले,
तभी तो देश आगे बढ़ रहा है
उन्हीं के सहारे।
मास्टरजी तो वहीं हैं ,
जहां हम पढ़े थे विचारे।
बात अब बदल गई है
तकनीक टीचर को मिल गई है,
ऑनलाइन क्लास वो ले रहा है
तकनीक से गृहकार्य, कार्यपत्रक दे रहा है।
अपनी अर्थ-व्यवस्था से खतरा लेकर

लैपटॉप में अंतर्जाल ला रहा है।
लेकिन उच्चवर्गीय -तथाकथित बुद्धिजीवी समाज कहता है कि,
शिक्षक कर क्या रहा है?
घर में बैठे-बैठे ऑनलाइन पढ़ाने में
कौन सी माया लुटा रहा है।
वास्तव में शिक्षा में बजारूपन हो गया है
गुरु दिव्य नहीं लेन देन का,
भौतिक साधन बन गया है।
शिक्षा जीवन में संस्कारों की नहीं
चीन, कोरिया के फैलते प्रभाव की प्रतीक हो गई है,
मानव तो आज ऐसे फिसल गया है
स्वार्थ, लोभ की कारा में कृतघ्न हो गया है।
हर कोई प्रवक्ता बनकर तैयार बैठा है
सुनने के लिए कोई  तैयार नहीं है,
कोर्ट की भी बात इनको नहीं स्वीकार है।
पिछली सदी की दिवस बेला
पूर्वाह्न् के उस पुनीत क्षण में,
समझ में न आया था कि
जो कहा था श्रेष्ठ गुरुवर ने
शिक्षण है गुरूतर कार्य, यहां सम्मान असोच है।
जो आस करोगे और की तो त्याज्य समझो स्वकर्म की।

-कमल चन्द्र शुक्ल

Published by kamal shukla

जन्म स्थान- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश . इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. एवं एम. ए. (हिंदी) , राजर्षि टंडन विश्वविद्यालय से एम. ए. (शिक्षा शास्त्र), फरवरी 2000 से केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे स्नातकोत्तर शिक्षक के पद पर कार्यरत।

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