एक मुलाकात

रात मेरी मुलाकात,
सफलता से हो गई।
जिसे देखकर मैं हुई पुलकित
मंद-मंद मुस्कराती बोल गई
बहन! तुम इतना क्यों इतराती
सब पाना चाहें तुम्हें,
पर किसी के हाथ यों
सहज क्यों नहीं आ जाती।

सुनकर ये मेरे शब्द
ओ हँसकर बोली,
बतलाती हूँ मैं ये रहस्य
मत समझो मुझे पहेली।
सतत करो कर्म
परिश्रम से मत भागो तुम,
जब तक न मिले मंज़िल ,
नींद, चैन को त्यागो तुम।

तुम आत्मविश्वास के बल पर
पहाड़, पर्वत हिला दोगे ।
चीर कर सीना मरुस्थल का ,
मचलती नदियां बहा दोगे।
विनत  हुई सफलता के सम्मुख
मर्म ये मैंने जान लिया।
संकल्प ,योजना, कर्म को बनाएं  प्रतिमान।
चूमेगी ये कदम हमारे, हर पीढ़ी, सोपान ।

-कमल चन्द्र शुक्ल

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Published by kamal shukla

जन्म स्थान- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश . इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. एवं एम. ए. (हिंदी) , राजर्षि टंडन विश्वविद्यालय से एम. ए. (शिक्षा शास्त्र), फरवरी 2000 से केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे स्नातकोत्तर शिक्षक के पद पर कार्यरत।

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