मेरी परीक्षा

घर में चल रही अंतिम पेपर की तैयारी,
देश में विकराल फैली कातिल चीन की महामारी।
सहसा मेरी आत्मा, 
सपनों में उतर गई ।
हो रही युग परीक्षा की, 
तस्वीर फ़्लैश बैक हुई।
साथ बैठी लड्डुओं के, 
मैं विनय करने लगी।
मिष्ठान्न समर्पित आपको पेपर मेरा कराइए,
हे महावीर, पवनपुत्र, संपूर्ण अंक दिलाइए।
आसन्न संकट विकट है, संकट मोचन ही बचावें,
अंजनि सुत हनुमान  ही,नैया पार लगवें।
दूषित अनुनय विनय पर, महावीर मौन थे,
सहसा स्वर एक गूंजा, रामदूत कुछ कह रहे थे।
शिक्षा परीक्षा खेल न है,
जिसे तुम हो सोचती।
विश्वास, श्रद्धा, त्याग, निष्ठा
होती जिसमें बलवती।
मनुजता के सभी गुण ए,
भागता मन छोड़ता है ।
विश्व की शिक्षा अधूरी, 
दो ध्रुवों की बढ़ी दूरी।
देश चाहे या कि हों हम,
चाइना या जर्मनी ।
प्रगति ये है दौड़ अंधी,
पृथक प्रेम से अनमनी।
खामियां तेरी नहीं,
सुबकता संस्थान है अब ।
उद्देश्य शिक्षा के अधूरे,
पाश्चात्य के प्रतिमान सब।
सुधरो सुनो! भौतिक मनुज,
मौका अभी भी विशेष है।
वरना सभी पछताओगे,
एक महाभारत शेष है ।
आंखें खुली तो देखती हूं,
माता मुझे जगा रहीं।
पुचकार कर प्यार से, 
दुनिया का हाल बतला रहीं ।
बोलीं कि बेटी स्कूल सारे बंद हैं,
बचना कोरोना के लिए अब परीक्षा निरस्त है।

-कमल चन्द्र शुक्ल

Published by kamal shukla

जन्म स्थान- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश . इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. एवं एम. ए. (हिंदी) , राजर्षि टंडन विश्वविद्यालय से एम. ए. (शिक्षा शास्त्र), फरवरी 2000 से केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे स्नातकोत्तर शिक्षक के पद पर कार्यरत।

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