मैं लेकर पहुंच गया हूं, जो मां ने दी थी राखी चुपचाप। रात-दिन की बिना परवाह किए अपने मामा के घर । मां ने कान में धीरे से कहा था, बताना मत किसी से कि मैं तुझे मां की राखी लेकर बहुत दूर रह रहे एकाधिपति साम्राज्य के मालिक चंद्रदेव मामा के पास भेज रहीContinue reading “चंद्रयान”
Tag Archives: poem
मन की सोच
टकराव है पिछली सदी की सोच और नई पीढ़ी के अंतराल के सोच वाले जनों में आधुनिक समकालीन विचारों से पुरानी सत्ता, पूर्वजों के क्रियाकलापों पर कुछ भी न करने का तिरस्कृत इनाम देकर टोपी उछाल देने वालों से । बड़ा अफ़सोस एवं ग्लानि होती है भला क्या समंदर का पानी पी के यांत्रिक, कलContinue reading “मन की सोच”
बीस बड़ा बेदर्द है….
सन् बीस बड़ा बेदर्द है आज सुपर पावर की जमीं पे फैल गया आतंक है। बड़े बड़े जनप्रिय शहरों में कर्फ्यू की खबरें गर्म है। बंकर में बन शाही बंधक वह जॉर्ज बीस डॉलर का घातक बीस-बीस का शब्द है ऐसे लुका छिपी का प्रलय हो जैसे अमरीका रूस कोरिया फ्रांस चाइना सहे न किसी की धौंस।Continue reading “बीस बड़ा बेदर्द है….”
अलविदा लॉकडाउन
देश की बंदी खोल गई वह इतनी बातें बोल गई जिसका था न कहीं हिसाब न है जिसकी कोई किताब।। नैतिक मूल्यों की गठरी से चुपके से कितने निकल गए दस हफ्तों के इस संकट में बालू जैसे सब फिसल गए । जीवन कौशल के कई नियम इस इम्तहान में फेल हुए सत्य धैर्य को छोड़Continue reading “अलविदा लॉकडाउन”
संकल्प
चल रहा चक्र जब बंदी का मंदी तुम न ला देना पुरुषार्थ करो आगे बढ़कर रथ को तुम रुकने न देना प्रतिकूल परिस्थिति में ही तो संग्राम बड़े सब लड़े गए मन में चलते संघर्षों से विजई बन कितने लक्ष्य नए। आलस छोड़ो ,बन कर्मवीर जन संवर्धन का अग्र बनो सरकारी सुविधा धन ले सहायContinue reading “संकल्प”
पाठशाला हम चलें……..
ऊबते मन की कहानी वेब वर्ल्ड के जाल की, जिसको पाने की खातिर ही नैतिक मूल्यों की तोल की। बहुत सोचा ऑनलाइन फिर भी जान न पाया है, है प्रबल तुम्हारी सोच कल्पना सर्वत्र गगन, थल साया है। झूठ तो बिल्कुल नहीं है, पर सच के भी कहां करीब ? मैं छू नहीं सकता तुम्हें, परContinue reading “पाठशाला हम चलें……..”
मैं शिक्षक…..
मैं शिक्षक हूँ मैं लोगों की समझ में, और लोग मेरी समझ में एक दूसरे से एकदम परे हैं। अभी कुछ महीनों पहले की बात लॉकडाउन होने के पूर्व, लोग कहते अनमने से शिक्षक करते क्या हैं ? वही चार किताबें हर साल, हमें पूरे खानदान को पढ़ाते आए हैं। असली दिमागी काम करते तकनीक वाले,Continue reading “मैं शिक्षक…..”
नई आस
अरे सुनती हो दीदी सुनयना, प्राइमरी स्कूल पर भारी भीड़ हैं परदेसी लोग यहीं कोरांटीन हो रहे हैं कोरोंना की भीत से | सब नजदीक के गांव के परदेसी चौदह दिन खातिर एकांत होंगे, बाकी जन शहर से पलायन कर गांव की ओर निकल पड़े हैं। सुनो ! पूर्वजों की कही बात एकदम सोलह आने सहीContinue reading “नई आस”
शहर का दर्द
मुझे छोड़ न जाओ बंधुहे शक्ति के अनंत सिंधुतेरे आगत से पूर्व यहांउत्कर्ष की न थी कोई गंधहे अनिकेतन अथक श्रमीतुम न जाओ यह शहर छोड़हम धूल धूसरित हो जाएंगेन यह कंप्यूटर साथ ही देगाऔर नहीं ये कल पुर्जेतुम जाओ हम ऐसे होवेंबिन रसोइया सुंदर सा घरआन बान सब शान निरालीहाट मॉल सब शोभा आलीबिनContinue reading “शहर का दर्द”
मैं कोरोना ब्याल हूँ।
मैं कोरोना ब्याल हूँ। विश्व व्यापी त्रासदी का जाल हूं। मैं काल का कुंचित कपाल विध्वंशकारी शक्तियों की मैं विशाल, मशाल हूं। घूरकर मुझको न देखो अतिथि हूं मैं चीन का । घूमने मै निकल आया साथ जो थे चीन में। मै तो वापस जाऊंगा ही पर कल्याण सोचो विश्व का। आत्मकेंद्रित हो गए । विकास के बियावान काContinue reading “मैं कोरोना ब्याल हूँ।”