शहर का दर्द

मुझे छोड़ न जाओ बंधुहे शक्ति के अनंत सिंधुतेरे आगत से पूर्व यहांउत्कर्ष की न थी कोई गंधहे  अनिकेतन अथक श्रमीतुम न जाओ यह शहर छोड़हम धूल धूसरित हो जाएंगेन यह कंप्यूटर साथ ही देगाऔर नहीं ये कल पुर्जेतुम जाओ हम ऐसे होवेंबिन रसोइया सुंदर सा घरआन बान सब शान निरालीहाट मॉल सब शोभा आलीबिनContinue reading “शहर का दर्द”