रात मेरी मुलाकात,सफलता से हो गई।जिसे देखकर मैं हुई पुलकितमंद-मंद मुस्कराती बोल गईबहन! तुम इतना क्यों इतरातीसब पाना चाहें तुम्हें,पर किसी के हाथ योंसहज क्यों नहीं आ जाती। सुनकर ये मेरे शब्दओ हँसकर बोली,बतलाती हूँ मैं ये रहस्यमत समझो मुझे पहेली।सतत करो कर्मपरिश्रम से मत भागो तुम,जब तक न मिले मंज़िल ,नींद, चैन को त्यागोContinue reading “एक मुलाकात”