मैं कोरोना ब्याल हूँ। विश्व व्यापी त्रासदी का जाल हूं। मैं काल का कुंचित कपाल विध्वंशकारी शक्तियों की मैं विशाल, मशाल हूं। घूरकर मुझको न देखो अतिथि हूं मैं चीन का । घूमने मै निकल आया साथ जो थे चीन में। मै तो वापस जाऊंगा ही पर कल्याण सोचो विश्व का। आत्मकेंद्रित हो गए । विकास के बियावान काContinue reading “मैं कोरोना ब्याल हूँ।”
Author Archives: kamal shukla
हम इन दशकों में भटक गए
हम इन दशकों में भटक गए हैं। बीते बीस बरस से लिख-लिखकर हार गए इंडिया विजन 2020 हो गए ढाक के तीन पात से हम दशकों से भटक गए हैं – चपला की इस चकाचौंध से दिया की बाती रुदन कर रही मिग मिराज के जोर-शोर पर मजदूर विवश पद चला रहा। प्रगति की बात हुईContinue reading “हम इन दशकों में भटक गए”
वेदना
संचार मीडिया अस्त-व्यस्त बैठी शासन की कठपुतली दर्शन वाचन है नहीं भली सत्ता की प्रतिनिधि अभिव्यक्ति। दो दशक पूर्व के मधुर स्वप्न स्मृतियों के मेरे कानन में ओछी सतही इस राजनीति ने अंतर्मन को झकझोर दिया 2020 का ऐसा भारत कभी न हमने लिखा-पढ़ा घर का देवता भूखों मर जाए दूर विदेशी ठाठ जमाए। उपचारोंContinue reading “वेदना”
व्यस्त हैं…..
सरकारें ऑनलाइन में, विपक्षी ऑफलाइन में, जनता लॉक डाउन में,बहुत व्यस्त हैं।डॉक्टर इलाज में, नर्स दवाई में,मरीज़ आशा की चिंता में ।बहुत व्यस्त हैं।तब्लीगी छिपने में, पुलिस बल खोजने मेंकामगार घर जाने को,बहुत आश्वस्त हैं।मोबाइल डाटा के खर्च में इंटरनेट पर सर्च में, होमवर्क करने में छोटे बच्चे व्यस्त हैं। मीडिया सुर्ख खबरों में,नेता बड़ी बहसोंContinue reading “व्यस्त हैं…..”
शांतिपथ
सावधान !भवितव्य मानव !यूं अब आत्मश्लाघा त्याज्य कर दे सीढ़ी परम सुख की बनाओ विश्व ग्राम को साकार कर दो। प्रगति जाल से दूर होकर।। सब विश्व जन की चेतना को जोड़ तोड़ की नीति से परे समत्व धर्म का रूप दे दो। तब तुम वहां पे पा सकोगे केवट का प्रेम, सबरी की भक्तिContinue reading “शांतिपथ”
जन-व्यथा
न लगे हमें अब गर्मी, औे दूर भागी सर्दी | बंदे जन सब रहे बोल, ये है भारत बंदी | एक महीना बीत गया, संक्रमण दिखा है मंद। जगत अर्थ रफ्तार की , हो गई है अब चंद। छुट्टी आतुर कार्मिक, सिर पे धरे हैं हाथ | बॉस कहें अब लो मजे, ब्रंच बनाओ साथ। शॉर्टContinue reading “जन-व्यथा”
स्कूल की याद
बड़े बड़े हैं शिक्षण -कक्ष वायु रोशनी सतत समक्ष पंखे फर्राटे भरते प्रत्यक्ष हवा लगे शीतल चहुं अक्ष भवन बना है लगे सलोना माली फूल लगाए माना गेट देख दिल खुश हो जाता चार पहर घर याद न आता शिक्षक हिंदी या विज्ञान करें सुलभ शिक्षा का दान खेल खेल में हुई पढ़ाई कितनी इसकीContinue reading “स्कूल की याद”
असंगत – जमात
मरकजी कुख्यात है वह, इस भूमि पर जो मौत लाता । प्रेम के हैं धुर विरोधी, कहीं बेर-केर का संग निभता। समर्थन इनको मिला है, बुद्धिवादी जन मनों का। है समझ में आता बराबर, यह बुद्धि है भूसा खली का । न्याय का पलड़ा हमेशा, सत्ता के संगत रहा है। जिसकी लाठी उसी की भैंस,Continue reading “असंगत – जमात”
सपने में
आरोग्य सेतु की कुंजी से, हर्ष की बेला आ गई। पूरण बंदी ख़तम हुई, कलियां सारी खिल गई। गली, सड़क हरियाली छाई, किसलय सब हंसने लगे। होली सी मस्ती जन – मन में, आम में बौर बढ़ने लगे। . रेल चल पड़ी धीमे धीमे,सरपट भागी कार।सुबह न्यूज पेपर मिला,खुशियां भरी अपार ।संग दादाजी की सुबह को,करContinue reading “सपने में”
मंथन
खेत सब बिखरे पड़े हैं ,दुकान सारी बंद हैहर गली सड़के मुहल्ले,देखकर सब सन्न है।मर गए जयचंद गोरी जिसमें नैतिकता न थी,रो रही यह भरत- भूमि जिसमें तब्लीगी न थी।घूमते हैं दस्युओं से,ईमान है न इनका भला,नाम में ईमान दिखता,पर कर्म लाता जलजला।लोग कहते हैं जमाती ,पर असल में हैं खैराती,मधु मक्खियों के घर मेंContinue reading “मंथन”