नई सदी की नई रीति है शिक्षा की अब नई नीति है। लागू होगी जल्दी है कब ? लेकिन आस लगी है जो अब। बीच डगर छूटी जो कक्षा सर्टिफिकेट मिलेगा, शिक्षा। करी पढ़ाई जाए न खाली होगी जीवन में न बेहाली। बुनियादी लेवल है आली कदम कदम पर करो क़व्वाली। चार चरण का शिक्षा-खंभContinue reading “शुभारंभ”
Author Archives: kamal shukla
विकास पथ
ये मर्मभेदी मीडिया तो सनसनी आश्वस्त है जनतंत्र के इस पिलर की, महिमा निरत अभिव्यक्त है। वाणी कलम के ये सिपाही, जाग्रत समाज के दूत हैं, धन्य हम इनको कहें, प्रत्यक्ष न्याय की आंख हैं। भूमि के मालिक यही, अन्नदाता हैं हमारे बिना संचित वैभवों के, किसान सत्यनिष्ठ है भले कोई न बखाने, ये स्वयंContinue reading “विकास पथ”
शिक्षा एवं नीति
ऑनलाइन क्लास में, भारत की खोज पढ़ाते-बुद्ध एवं अशोक चंद्रगुप्त और चाणक्य को समझते सहज स्मृति हो आई गुरु महिमा और नैतिकता की। मन तीन दशक के इतिहास की ओर भाग गया। पूरी पाठशाला में दो कमरे जिसमें, रिसती छत के नीचे स्कूल रजिस्टर, कीमती सामान। चाभी गुरुजी की जनेऊ में बंधी संसाधन बहुत कम लेकिन हमारेContinue reading “शिक्षा एवं नीति”
कुछ भी बन……
कुछ भी बन, बस ऐसे मत बन आस करें हम युग आने की, वैसे समय के मिल जाने की | प्रतिपक्षी भी पड़े बिपति में, जिसमें से होकर हम फिसले | हमें भी मौका मिले हंसी का, व्यंग्य कर सकें उसी ढंग से | बदले की भाषा गन्दीली निंदा सबद बड़ी ही रसीली, कुछ भीContinue reading “कुछ भी बन……”
जाने क्यों?
पता नहीं क्यों, आजकल सत्ता-मद में विश्वस्त पढ़ी लिखी जनता को क्या हो गया है कि हर गली मुहल्ले चौराहे पे आम चर्चा बहस कि, अब कुछ हो रहा है, मंदिर, सड़क सब बन रहे हैं तकनीकी खेती हो रही है, रेल सरपट चल पड़ी है सोच सबकी बढ़ रही है । पहले तो कुछContinue reading “जाने क्यों?”
समर्पण
क्या लिखूं कि आज यह कुर्बानियों का देश है जो देखते हो सामने, वह एक पक्ष निमेष है। नीति बदले की बढ़ी, कहते सभी विशेष हैं कौन है यह पर्व जिसमें, भारतीयता शेष है। गड़े मुर्दों को उखाड़े, आप बस आईना निहारे दूसरों पर कीच फेंके औ कहें हम साफ़ हैं। हो विरोधी संगरोधी याContinue reading “समर्पण”
आइना……
कभी आना मेरे गांव रेल पटरियों से चलकर, कोलतार की सड़क को छोड़कर पक्की ईंटों के दाम में कच्ची ईंटों की पगडंडी सी टूटी सड़क, घर, शौचालय सरकारी योजना से अनुमोदित दिखेंगे। पर तुम्हें अहसास होगा, सभी जनों में जल-सी निर्छलता भरे मन की गन्ने की मिठास से सने लोगों की, जिनमें पार्टियों के राजधर्मContinue reading “आइना……”
न्याय की आस
जाएं कहां हम दोस्त इन फरेबियों को छोड़कर, हर शहर गली कूंचों में इनकी जमात बैठी है। मानस महाभारत पढ़ें हम धर्म, कर्म की बात सोचें नवल प्रभात के लिए, कर्तव्य की हर बाट जांचें पर वो हर जगह हैं दीखते | शक्ति की आंधी लिए अल्पकालिक सुख की खातिर। पद, प्रतिष्ठा, शान, शौकत हर तरफContinue reading “न्याय की आस”
मेरे मन
ओ मेरे आदर्शवादी मन, तुम हैरान मत होना । अपनी लघु विस्तृत दृष्टि से, दुनिया की थाह मत लेना । ऊंची उड़ान की खातिर हंस जैसा धैर्य, चील सी दृष्टि की तुम्हें जरूरत है। विधाता के खेल में, नायकों का अवतरण सदैव अकस्मात ही, अनापेक्षित होता है। क्या तुमने देखा नहीं जब माया के देशContinue reading “मेरे मन”
पिता…
आज जब मै घर से निकला शहर के लिए, तो देखा! पिता बड़े उदास हैं। देखा बड़े गौर से आकाश सी सीमा को समेटे पिता के व्यक्तित्व को । यकीन मानों मैं हिल गया देखते ही रह गया था जिसमें हैं असीम सामंजस्य की शक्ति जो पिछले चालीस वर्षों से बस, ऐसे ही बने हुएContinue reading “पिता…”