हे प्रिय ! तुम क्यों रूठ गए ? दीवारों के पार हो गए अहम् भला क्यों दूषित है द्वंद्व भरा सबका मन क्यों है ? वह नीरज जो पंक में खिलता कभी नहीं आधार भूलता मुझ जैसे को त्यक्त् जानकर क्या बात हुई तुम चले गए मुझको कैसे भूल गए ? जीवन की है डगरContinue reading “भूल गये”
Author Archives: kamal shukla
स्त्री तुम
अब मैं तुम्हें किसी की सफलता के पीछे का हाथ न कहूं, त्याग की प्रतिमूर्ति क्यों बोलूं ? व्यक्त करूँ तुम्हें क्यों ? ममता प्रेम की अविरल धारा-सी जो पुत्री, प्रेयसी, बहन, सहचरी और माँ की अनुभुति है। धरा पर बारिश की धूल की मृत्तिका की सुगंध-सी मदर टेरेसा या कर्तव्य पथ से भ्रमित मनुContinue reading “स्त्री तुम”
जिद !
जिद की कोई सीमा है ? विधाता ही सहाए। बड़ी अजर है और अमर भी बचपन से ही बच्चा चुहल करके मां से जिद कर बैठता है चांद तारे की मांग करके, और ममतामयी मां जस-तस पूरी करती है बच्चे की इच्छा आईने में चांद लाके। जवां होके यही बात खुद प्रेयसी से कहता हैContinue reading “जिद !”
मेरा गणतंत्र
क्या उल्लास के दिन थे वे जब हमें नए वर्ष का नहीं, 26 जनवरी के आने का बेसब्री से इंतजार होता था। कागज़ पर झंडे का रंगना और बांस की डंडियों में फिट कराना। हर के पास तिरंगा स्वतः होना कपड़ों को (ड्रेस नहीं) साफ करके लोटे के पेंदे से प्रेस करा कर पहनना क्याContinue reading “मेरा गणतंत्र”
स्मृतियाँ
सुहानी स्मृतियों में स्कूल घिरा है मुझे आज वो नज़र में तिरा है। यह मत पूछना मुझसे कि क्या संज्ञा है आपके स्कूल की, क्योंकि नाम जान लेने से लोग बाल की खाल निकालते हैं, और यह मैं होने न दूँ। लोग समझदार ज्यादा हो गए हैं, तभी तो बड़ों की पगड़ी भी उछालने मेंContinue reading “स्मृतियाँ”
उठो चण्डिके
उठो चण्डिके शस्त्र सँभालोमहिषासुर संहार करो।आज तमाशा मचा शील का,चीरहरण होता नारी का ।मूक-बधिर इन निरीहों से,कब तक आस लगाओगी ?अपना शील स्वयं बचाओ,महिषासुर संहार करो।उठो चण्डिके शस्त्र सँभालो…..बिके हुए हैं मंत्री, संतरी,सबके मुँह पर जड़े हैं ताले ।पड़े यहाँ सब आँखें हैं मूँदे,बनकर दुष्टों के प्यादे ।फिर से रूप धरो शक्ति का,महिषासुर संहार करो।उठोContinue reading “उठो चण्डिके”
मैं इक्कीस
विष भरे, तुम बीस थे तुम काल थे, अतिचार थे। तुम बहुत ही थे निर्दयी दुख दर्द के आगार थे। दीनता सूनी सड़क के तुम बड़े तानाशाह थे। भीत सन्नाटा तुम्हीं से, तुम महामारी दशक के। मौत का तांडव लिए चल तुम त्रासदी संग क्रूर थे। काली निशा, अब वीतरागी वापसी शुरू हो गई। दैवत्वContinue reading “मैं इक्कीस”
आगाज
बीस में जो मुश्किलें थीं, उसको भूल जाएं । स्वागत करें नववर्ष का, सतरंगी भूमि सजाएं । इंद्रधनुषी वितान में, सौहार्द्र, समरस, घोल दें। स्वस्थ, शुभकर उन्नति ले, नव दशक का आगाज करें। -कमल चन्द्र शुक्ल
अभिव्यक्ति
त्रासदी की कारवाँ के सप्त व्यूह भेदकर, हम सतत चलते गए अड़चनों को तोड़कर । ज्ञान की गंगा को अब तक है भला कोई रोक पाया ? अभिव्यक्ति में है शक्ति कितनी है कौन ये जान पाया ? विविध विषय हैं कलारंगी है लोकरंजक भित्तियां, सप्त रंगी इंद्रधनुषी कैनवस पर लिखित कृतियां । कल्पना केContinue reading “अभिव्यक्ति”
सोचा न था…..
मधुमास की स्वर्णिम सांझ फागुन का खिला पलास होली की आसनाई आंच मिजाज बदरंग करके जनता कर्फ्यू का आना वर्ष की होली मिलन का जलसा होंठ सिली सत्ता में तब्दील होना सिर्फ़ सपना-सा हो जाना सोचा न था। नए शिक्षण-सत्र की बिना सरस्वती पूजा के अनिश्चितता की शुरुआत ऑनलाइन पढ़ाई की बात बिना मिष्ठान्न केContinue reading “सोचा न था…..”