मेरी दृष्टि में:स्वाधीनता

नूतन कंठ से स्वाधीनता का राग सुनाती हूँअंतर्मन में छिपी भावना सबको बतलाती हूँ।स्वाधीनता है अधिकार श्रम का फल पाने का,स्वाधीनता है अधिकार शोषकों की धज्जियां उड़ाने का,शोषकों को गले लगाने काऊँच, नीच ,कुल, जाति, रंग के भेदभाव मिटाने कारूढ़िवाद के कलुषित महल ढहाने का ।है स्वाधीनता शिक्षा, न्याय और रोजगार पाने काहै स्वाधीनता निःसंकोच,निर्भयContinue reading “मेरी दृष्टि में:स्वाधीनता”

काश! मैं भी दसवीं में होता……

इंतज़ार वर्षों का कब मैं बड़ा होऊंगाऔ पहुंचूगा दीदी जैसी बड़ी क्लास मेंतो मेरा भी बड़ा मान होगाखान-पान का ध्यान होगासेवा-सत्कार विशेष होगामेरे माता-पिता कहीं जाने से बचेंगेरिश्तेदारों को बोर्ड का हवाला देकरअपने घर न बुलाने की सोचेंगे।मच गया हाहाकारहर तरफ अफरातफरी हैकहती है माँ आ गई बोर्ड परीक्षा है।वो स्वर्णिम बेलाजब मैं स्टडी टेबलContinue reading “काश! मैं भी दसवीं में होता……”

मुझे कुछ कहना है……

मुझे कुछ कहना हैदेश के युवाओं सेविद्यार्थियों और किसानों सेकि कर्मपथ कठिन हैप्रस्तर युक्त हैविधि की तमाम विडंबनाओं से युक्त हैलेकिनतुम्हें कभी भी विषम परिस्थितियों के सम्मुखझुकना नहीं है।विनत भाव स्वीकार्य हैपरंतु अपराजिता सिर्फ़सत्य का स्वरूप हैजिसमें भव्यता का महिमामंडन होता है।हे मेरे आलोक!तुम विचलित मत होजीवन की कठिनाइयों सेदुर्गम और अगम रास्तों के बीहड़ोंContinue reading “मुझे कुछ कहना है……”

गंतव्य

दूर चलें क्षितिज के पार,अधुनातम समस्याओं से घिरीधूसरित दुनिया से।स्वार्थ, वैमनस्य और भौतिकता की चौंधियाती चमक से भरी हुई सत्ता से ।चलें हम एक ऐसी जगह जहाँ सब कुछ अपना हो,पराया कुछ न होसब कुछ होने वालाया हो सकने वाला ।हमें सतत स्वीकार्य हो,बिना किसी शर्त व परिणाम के।एक ऐसे आसमान की खोज मेंजिसमें धुंधलकाContinue reading “गंतव्य”