चिनाब पे

पांच मई पच्चीस को जब भारत-सम्राट ने चिनाब के जल प्रवाह को रोका तो मैंने प्रवासी अखनूर के नाते दरिया को टोका । माते चिनाब ! तू पाकिस्तान क्यों गई? न जाती तो आज इतनी बड़ी बात न होती । न तेरा बहाव रोका जाता और न तुम पर आश्रित लोग, जीव जंतु यूं तड़पते।Continue reading “चिनाब पे”

समर्पण

मैंने सोचा, तितलियों को देखकरबहुत बार जांचामैने अपने अनुभवों कोबहुत सारी  कविताओं मेंबाँचालेकिन मिला नहीं वहजिसकी आशा थीअपितु मंजिल कुछ और दिखी,जिसमें कहा गया किलगाव और प्रेमसमर्पण की खुली अंजुली हैं ,पानी की स्नेह सिक्त छुवन है.जहांअभीष्ट की गुंजाइश नहीं,दबाव की, बंद की हुईमुट्ठी नही, जिसमेंआज़ादी की इति श्री हो जाती है।  -कमल चन्द्र शुक्ल

चंद्रयान

मैं लेकर पहुंच गया हूं, जो मां ने दी थी राखी चुपचाप। रात-दिन की बिना परवाह किए अपने मामा के घर । मां ने कान में धीरे से कहा था, बताना मत किसी से कि मैं तुझे मां की राखी लेकर बहुत दूर रह रहे एकाधिपति साम्राज्य के मालिक चंद्रदेव मामा के पास भेज रहीContinue reading “चंद्रयान”

चुनाव

निकल पड़े हैं लोगों को लुभाने शुरू हो चुकी है कक्षा राजनीति की, पाठ पढ़ाने की हर कोई नेता एक दूसरे की पीढ़ी दर पीढ़ी की क्षुद्र कालिख को , पार कर तूफान से आई नाव में जर्जरता एवम जीर्णता को असफलता के अवतल दर्पण, माइक्रोस्कोप से लोगों को दिखाने में लगा है । मर्यादाओंContinue reading “चुनाव”

किताबें

किताबें समझती हैं हर पाठक और दर्शक को उनकी अंगुलियों के दबाव के पकड़ की अहसास से समझती हैं कि जिनके हाथों में हैं वे उनका प्रयोज्य क्या है ? आर्थिक सामाजिक या राजनीति प्रेरित धार्मिक ? वो सब जानती हैं हमारे उद्देश्यों की क्षणिक कल्पनाओं को। हम जैसे अल्प ज्ञानी को बताती है किContinue reading “किताबें”

कुछ पल

आओ आज कुछ पल बिताएँ। अपने लिए कुछ पल चुराएँ। सूरज की आँच को, ढलती साँझ को, कुछ पल निहारें। आओ आज कुछ पल बिताएँ। अपने लिए कुछ पल चुराएँ। फागुन के फाग को, सावन के राग को, कुछ पल गुनगुनाएँ। आओ आज कुछ पल बिताएँ। अपने लिए कुछ पल चुराएँ। ढोलक की थाप का,Continue reading “कुछ पल”

नन्हीं चिड़िया

मेरे घर की बालकनी में नीले पंखों वाली मनोरम चिड़ियों का एक जोड़ा बड़े शान से रात में रहता था। कभी-कभी मैं उनको चुपके से देखता खुश हो जाता, उनकी खुशहाली देख के कुछ माह बीते और बतलाते। हंसी-हंसी में कह दिया बिना किराया दिए मुफ्त में मेरे साथ ये भी रह ले रहे ।Continue reading “नन्हीं चिड़िया”

आखिर कब ?

कोई नहीं समझता हमारी बात (विद्यार्थी) एक गेंद जैसी हमारी स्थिति पिछली सदी जैसी आज भी बनी हुई है न जाने कितने शिक्षा आयोग और अनेक पाठ्यचर्या व संशोधन शिक्षा में, बाल केंद्रिकता के लिए आए और गए । लेकिन ढाक के वही तीन पात सतत कायम रहे । नई शिक्षा नीति हो या परीक्षाContinue reading “आखिर कब ?”

मन की सोच

टकराव है पिछली सदी की सोच और नई पीढ़ी के अंतराल के सोच वाले जनों में आधुनिक समकालीन विचारों से पुरानी सत्ता, पूर्वजों के क्रियाकलापों पर कुछ भी न करने का तिरस्कृत इनाम देकर टोपी उछाल देने वालों से । बड़ा अफ़सोस एवं ग्लानि होती है भला क्या समंदर का पानी पी के यांत्रिक, कलContinue reading “मन की सोच”

आज़ादी

आज़ादी ! हर पल, प्रतिपल ठीक नहीं ये रिश्ते और संस्कार खत्म करती है, समाज द्वारा स्वीकृत मूल्यों को नकारती है, आदमी को घुमाती है इतना कि ज़िंदगी बेशर्म हो जाती है । मां-बेटी के भाव मलिन होते हैं पिता-पुत्र के रिश्ते तार-तार हो जाते हैं अपने ही लोग चाहकर भी स्वतंत्रता के फेर मेंContinue reading “आज़ादी”