
किताबें समझती हैं हर पाठक और दर्शक को उनकी अंगुलियों के दबाव के पकड़ की अहसास से समझती हैं कि जिनके हाथों में हैं वे उनका प्रयोज्य क्या है ? आर्थिक सामाजिक या राजनीति प्रेरित धार्मिक ? वो सब जानती हैं हमारे उद्देश्यों की क्षणिक कल्पनाओं को। हम जैसे अल्प ज्ञानी को बताती है कि सूक्ष्म और लघु तरंगों की हमीं हैं जननी, जिस पर इतरा रहे हो आज तुम सब इस नेट, इंटरनेट नेटफ्लिक्स पर वे सब मेरी ही फसलें हैं विविध उपजें हैं। बड़े-बड़े भविष्यवक्ता हल्ला कर कह रहे थे सदी की शुरुआत से ही। संकट है भयानक अंतरजाल की दुनिया से किताबों पर। हमें उपेक्षित कर अनिद्रा, क्रोध और कुसंग के कीचड़ में धंस गए, फंस गए। मूल्यों को भूलकर महारथी कर्ण की तरह पहिए धंस गए। हमें अवहेलित न करो। मैं ही संतुलित ज्ञान नींद, चैन तुम्हें देती हूं दुनिया है तो मूर्त के ही स्थूल रहस्य के कारण अन्यथा सभी लोग क्या संजय-सी दिव्य दृष्टि रखते हैं क्या ? ज्ञान की शुरुआत सदैव स्थूल से ही संभव है पुस्तकें हैं अपरिमित ज्ञान, आनंद, रस की आधारभूत प्रदाता वे ही हैं अजेय अक्षयपात्र और अनंतकालिक।
-कमल चन्द्र शुक्ल

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Nice poem sir
Keep going.
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Amazing 👏 😇🙏
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साधुवाद
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वाह वाह अद्भुत शब्द संयोजन
सादर चरण वंदन गुरूदेव
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