मन की सोच

टकराव है पिछली सदी की सोच और
नई पीढ़ी के अंतराल के सोच वाले जनों में
आधुनिक समकालीन विचारों से
पुरानी सत्ता, पूर्वजों के क्रियाकलापों पर
कुछ भी न करने का तिरस्कृत इनाम देकर
टोपी उछाल देने वालों से ।
बड़ा अफ़सोस एवं ग्लानि होती है
भला क्या समंदर का पानी पी के
यांत्रिक, कल पुर्जों कारखानों की,
कारों, रेलों की
कंप्यूटर क्रांति आ गई है
इन दशकों में।
घर हो या कोई देश के लोग
संक्रमण काल में सूक्ष्म इलेक्ट्रॉन
या बड़े धीर अचल भी, हिल जाते हैं।
जब होता है बंटवारा भूमि, परिवार
या देश का तो
तब सूझता कुछ भी नहीं
लोग तमाशा देखने को कहते हैं !
खेल का आनंद उठाते हैं,
कि देखो कैसे चला पाएगा ? लेकिन
सौ करोड़ के लिए
रोटी कपड़ा

दिला ही देता है
हरित क्रांति से खानपान औ धान
श्वेत और नीली क्रांति से
युवा शक्ति का होता है आह्वान,
संभाल लेता है बूढ़ों को,
नए को संचार एवं गाड़ी की
तकनीक में भविष्य का रास्ता दिखा देता है।
और क्या चाहिए ?
सच है नई पीढ़ी के मूल्य हमेशा
टकराते हैं पुरानो के सिंचित, पालों से
पर एक बात याद रखो कि
कि कल तुम भी
तो पुराने होगे मेरे दोस्त,
एक फासला रखो विचारों के संघर्षों में
जिसमें तब
तुम भी रह सको और वे भी
ताकि तुम्हें शर्मिंदा होकर मुंह न मोड़ना पड़े। 

-कमल चन्द्र शुक्ल

Published by kamal shukla

जन्म स्थान- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश . इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. एवं एम. ए. (हिंदी) , राजर्षि टंडन विश्वविद्यालय से एम. ए. (शिक्षा शास्त्र), फरवरी 2000 से केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे स्नातकोत्तर शिक्षक के पद पर कार्यरत।

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