तुम्हीं….

तुम्हीं ज़िंदगी, तुम्हीं हमराज हो।
तपती रेत में, शीत का अहसास हो।
ठिठुरती ठंड में, गर्म का आभास हो।
होठों की हँसी,चेहरे की मुस्कान हो।
तुम्हीं हर सुर, तुम्हीं हर साज हो।
घनघोर तिमिर में, आस का प्रकाश हो।
तुम्हीं हर खुशी, तुम्हीं मेरा नाज हो।
तुम्हीं मेरी धड़कन, तुम्हीं आवाज़ हो।
तुम्हीं मेरे सरसिज, तुम्हीं सुबास हो।
तुम्हीं हो मेरे कल, तुम्हीं अद्य हो।
तुम्हीं से ज़िंदगी का हरपल गुलजार है।
हरपल गुलजार है....हरपल गुलजार है।

-स्मिता देवी शुक्ला

Published by kamal shukla

जन्म स्थान- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश . इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. एवं एम. ए. (हिंदी) , राजर्षि टंडन विश्वविद्यालय से एम. ए. (शिक्षा शास्त्र), फरवरी 2000 से केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे स्नातकोत्तर शिक्षक के पद पर कार्यरत।

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