कैसे करते हैं लोग तुलना किसी की, क्योंकि मैं सदा ही यहां लोगों को असफल ही पाता हूँ । मूल की छाया प्रति भी कभी समान होती है क्या ? भले ही कितने मेगा पिक्सल का हो कैमरा ? माँ की जैसी फोटो कही बन पाती है ? पता लगाया क्या ? मिलना दुष्कर ही नहीं, आकाश कुसुम सा असंभव है। ये मूर्तिकार चित्रकार भी बड़े चतुर बन खूब सूरत कृतियों से, पेंटिंगों में मूल के नज़दीक होने का, पहुंचने का जबरन दम्भ भरते हैं । मोनालिसा और मदालसा से भी विस्तृत, खूबसूरती का कैनवास बिछा है सुदूर ग्राम की, उषा बेला में। युगों की तुलना करके खुद अपनी प्रतिभा का एक्स रे करना सिर्फ़ शर्मसार होना है। नमक और दूध का दाम सिर्फ उस समय का तटस्थ इतिहास ही बताता है, अन्यथा बेचारे लेखक कवि तो चांदी के जूते के मारे हैं। तभी कालिदास शेक्सपियर और समुद्रगुप्त नैपोलियन के सहारे हैं। न मोदी कभी अटल हो सकते हैं औ न ही मनमोहन इंदिरा, अरे उनको उस युग की तुला में तौलो, जिस समय की मिट्टी में वे जीते है जीवन के कर्म । तब सही और सम्यक मूल्यांकन की सोच और समझ जनता को दिखा सकोगे । भूलना नहीं, हर दर्पण का पृष्ठ तल सदैव श्वेत पृष्ठभूमि लिए होता है।
-कमल चन्द्र शुक्ल

सादर चरण वंदन शुक्ल जी
अप्रतिम रचना
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प्रेरणा के लिए साधुवाद
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