
गांव के जन कोलाहल में खेत और खलिहान में बुवाई हो या मड़ाई या हो गन्ने की कटाई आफ़त बिपत में भी गुहार की आर्त पुकार में एक दूसरे से मनमुटाव के बावजूद लोग मदद के लिए आ जाते थे। शादी विवाह के विविध लोकाचारों में धर्म जाति की दीवारों को लांघ आई बारात का स्वागत सभी मिलकर करते हैं और बिना सर्टिफिकेट लिए साम्प्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल होती थी पेश जनमानस में । राहों मे बेसुध गिरे होने पर विपदा में घिर जाने पर बिना भेदभाव के बिना शर्त, व समझौते के सहारा बनते थे लोग। नेकी कर दरिया में डाल, की परिपाटी को मानते थे। अब तो कितने ही पाठ पढ़ मिलती नही नैतिकता की सच्ची परिभाषा । रूस यूक्रेन युद्ध को देख हृदय में हुआ है हादसा विश्व प्रेम, शांति संघ देशों से हो गई है निराशा। क्योंकि लोगों को, देशों को हो गई है रेटिंग और सुपर पावर की लालसा। बहुत कुछ बदल गया है दोस्त लोग - बाग़ बहुत चालाक हो गए हैं । धर्म धरा की संस्कृति के पुरोधाओं पर स्वार्थ संग्रह वृत्ति हावी हो गई है कुछ इस कदर कि बजाय अपना चेहरा देखने के आईना ही लगातार साफ किए जा रहे हैं।
-कमल चंद्र शुक्ल
