सच्चा योग

स्कूल जाते समय, विलंब होने पर
चलती गाड़ी में, सामने के शीशे पर
सूरज की तेज रोशनी आने पर
चकाचौंध से गति बाधित हो गई
किसी की सहज हंसी, सामने आई
सूरज बोला ! गुस्सा काहे करते हो
खुद ही तो देरी से उठते हो ।
मैने कहा, देखिए देव
हमें सुझाव  कुछ न देव
आप के तो मजे है
दिन दिन के काम हैं
बाकी आराम है
चंद्रदेव साथ हैं
तभी तो सब सहाय हैं ।
काम बहुत हैं मेरे पास
दिन के साथ रात में  भी
जीवन जीना हराम है।
सूरज बोले, अकुशल मनुष्य
कार्य  करने की कला सीखो
जैसा कि जगद गुरु कृष्ण ने
कुंती पुत्र परंतप अर्जुन को
बताया था कि
कर्म करो, कुशलता से करो
कर्मफल में त्याग,
यही सच्चा योग है
बाकी सब भोग है।
चींटी से पृथ्वी तक देखो
सबने सीखा, चलना समय पर
सभी की आयु नियत लेकिन
समय में त्रुटिहीन संयोजन है।
और तुम
ज्यादा कलाकार बनते हो
तभी उलट पलट बेचैनी है
रोग दुख जरा मरण की चिंता है।
मेरे  बॉस, मेरे कार्यों की
निगरानी नहीं करते, हमने अपना सब कर्म
उन्हें समर्पित कर दिया है
मेरी कर्मफल में अनासक्ति है।
तुम भी मेरी भावना से कार्य करो
कभी परेशान् नही होगे
मेरी तरह रोज कार्य करने में
नव ऊर्जा का संचार होगा

-कमल चन्द्र शुक्ल

Published by kamal shukla

जन्म स्थान- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश . इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. एवं एम. ए. (हिंदी) , राजर्षि टंडन विश्वविद्यालय से एम. ए. (शिक्षा शास्त्र), फरवरी 2000 से केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे स्नातकोत्तर शिक्षक के पद पर कार्यरत।

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