शिक्षा में बदलाव

दुनिया, दूसरों के अंधेरे पक्ष दिखाती
अपनी स्वार्थ वृत्ति को साधती
स्वयं को सच कहती है।
दशकों पूर्व, शिक्षण से लेकर
प्रशिक्षण कार्यक्रमों में
शिक्षण  कौशलों एवम तकनीकों में
गुरुजनों द्वारा बताया गया कि
पढ़ाना त्याग की प्रवृत्ति है
इसका जीवन साधु वृत्ति है
अगर कर सको चमक दमक, धनाढ्यता,
भोग से दूरी स्वीकार्य
तभी जारी रखना शिक्षण व्यापार।
महाभारत के गुरु द्रोण ने
समत्व भाव से सभी को, पुत्र को भी
विद्याएं सिखाईं, यहां तक कि
अपने क्रोध के संवेग को संभाल न
सकने वाले पुत्र को, बिना पक्ष लिए
विद्या न दी,
जो वे दे सकते थे, दान किए  
अपनी सर्वश्रेष्ठ विद्याएं सिर्फ
पेट की खातिर
तब भी गुरु द्रोण एकलव्य से 
अंगूठा मांगकर बदनाम कैसे हो गए,
शायद शिक्षा कभी स्वतंत्र हुई ही नहीं
राजतंत्र का दबाव तब से
आज तक बना हुआ है।
आज भी सत्ता के लोग
किसान को मिट्टी की गंध तो
कुम्हार को चाक चलाना सिखाते,
अध्यापन तकनीक बताते वे लोग
जिन्हें नहीं पता बाल-मनोविज्ञान
शिक्षण कार्य में अनुभूति की।
संस्कारों, नैतिक मूल्यों में परिवर्तन,
भौतिकता एवम दूषित चकाचौंध के
लिए आसान हो गया है।
शिक्षा की विविध नीतियां मैकाले की शिक्षा के
दो शतक के बाद नए कलेवर में,
चमकदार आवरण में  शिक्षा की 
उन्नत वर्जन हो गई हैं |
आज धरातल पर सरे आम,
संघर्ष करते, लुटते पिटते ,अभिमन्यु को
न गर्भ में मिला ज्ञान न दुनिया के
छलावे के स्कूलों में क्योंकि
यहां सब कुछ बाजार के दांव पर है
पूर्व निर्धारित दबाव है, परतंत्रता है।
जब तक सत्ता की गलियों में
मूल्यों की पूर्व निर्धारित आदर्शों से
आज़ादी नहीं होगी
तब तक विश्व शिक्षक जन्म लेगा कैसे
और  एक महाभारत का जन्म
होने से कौन रोक पायेगा?

-कमल चन्द्र शुक्ल

Published by kamal shukla

जन्म स्थान- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश . इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. एवं एम. ए. (हिंदी) , राजर्षि टंडन विश्वविद्यालय से एम. ए. (शिक्षा शास्त्र), फरवरी 2000 से केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे स्नातकोत्तर शिक्षक के पद पर कार्यरत।

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