
शांत क्यों हे सर्व संभव ? तुम कर्तव्यों की इतिश्री कर गए या डर गए इस भीषण आपदा में क्या गरुण ? नहीं सुनाई देती तुम्हें दुनिया की करुण आर्तनाद । अपने कर्तव्यों से मुख क्यों मोड़ रहे अब नहीं रुको, कह दो ब्रह्मांड के सर्वश्रेष्ठ सारथी से अपनी फैलाई गई विश्व व्याप्त त्रासदी के काल दंड को अब समेट ले चक्रधारी जी। ओ विधाता ! चार मुखों वाले उर्वरा संस्कृति को, अपने किए का दंड बहुत मिल गया है अपनी आतुर अंगुलियों को जोड़ वह आपको बुला रहा। भाग्य लेख की दिशा बदल अंधेरे को दूर कर, शुभता के उजाले की आश में पूरी दुनिया है तुम्हें पुकार रही। हे ब्यालधारी, चंद्रशेखर विश्व कल्याणकारी, उत्कृष्ट धनुर्धर अपनी करुणा का विस्तार करके जग व्याप्त, विषम, आतताई विकट दुःखदाई कोरोना से संभावना के स्वयंभू, त्रिपुरारि मुक्त करो संपूर्ण जग को इस महामारी के दुख से ।
-कमल चन्द्र शुक्ल

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