उठो चण्डिके

उठो चण्डिके शस्त्र सँभालो
महिषासुर संहार करो।
आज तमाशा मचा शील का,
चीरहरण होता नारी का ।
मूक-बधिर इन निरीहों से,
कब तक आस लगाओगी ?
अपना शील स्वयं बचाओ,
महिषासुर संहार करो।
उठो चण्डिके शस्त्र सँभालो.....
बिके हुए हैं मंत्री, संतरी,
सबके मुँह पर जड़े हैं ताले ।
पड़े यहाँ सब आँखें हैं मूँदे,
बनकर दुष्टों के प्यादे ।
फिर से रूप धरो शक्ति का,
महिषासुर संहार करो।
उठो चण्डिके शस्त्र सँभालो.......
कोमल हो कमजोर नहीं,
अपने आन की हो रक्षक।
रौद्र रूप जग को दिखलाओ, 
बन जाओ दुष्टों की भक्षक।
कर से अपनी शक्ति सँभालो,
महिषासुर संहार करो।
उठो चण्डिके शस्त्र सँभालो....

-स्मिता देवी शुक्ला

Published by kamal shukla

जन्म स्थान- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश . इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. एवं एम. ए. (हिंदी) , राजर्षि टंडन विश्वविद्यालय से एम. ए. (शिक्षा शास्त्र), फरवरी 2000 से केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे स्नातकोत्तर शिक्षक के पद पर कार्यरत।

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