


कभी आना मेरे गांव रेल पटरियों से चलकर, कोलतार की सड़क को छोड़कर पक्की ईंटों के दाम में कच्ची ईंटों की पगडंडी सी टूटी सड़क, घर, शौचालय सरकारी योजना से अनुमोदित दिखेंगे। पर तुम्हें अहसास होगा, सभी जनों में जल-सी निर्छलता भरे मन की गन्ने की मिठास से सने लोगों की, जिनमें पार्टियों के राजधर्म की चर्चा न होकर लोकधर्म हावी है। अनेक कमियों के बावजूद उनमें असली राष्ट्रवादिता प्रभावी है। जहां कुछ नारे लगाकर, मीडिया की चाटुकारी खबरों का, अखबारों में छाए सच्चे झूंठे समाचारों का ओठों के कोनों से विरोध दर्ज कराके, खेतों की ओर चुपचाप निकल जाते हैं। जय जवान तो है यहां 'हर निगाह में लेकिन लाल बहादुर का किसान, साठ बरस का होने के बावजूद फटेहाल यूरिया पोटाश के लिए संसद को निहारते, बैंक घोटाले को सोचते पुलिसिया बल से भयभीत, कर्ज उतारने में बहुत बदहाल है। अब इनका विश्वास दलबदलुओं, बेईमान नेताओं के टोटकों से भर गया है | इन्हें अब लेन देन के बाज़ार का, उनके काले न्याय का पता चल गया है तभी तो वोट बाहुबलियों के लिए @ अनमने आधा ही दे पाते हैं, बेरोजगार तो नोटा पे, भड़ास निकाल लेते हैं और जब कभी सहसा, दस्यु राजनीति में अर्जुन पंडित की सत्ता खड़ी हो जाती है तो, लगता है कि विकास के बदले में विनाश के हथियार तैयार कर लेते हैं। न्याय की आस छोड़ मुठभेड़ की अंधी दौड़ में, हम सब बंदूकें बो रहे हैं। खुद की तस्वीर न देख साफ़ बस,आइना रगड़ रहे हैं।
-कमल चंद्र शुक्ल

Hate India’s filthy politics😡….and yes,your poem is like a mirror showing the bitter side of politics.Very very inspiring 👏
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Nice poem sir g
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सुन्दर कार्य
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बढ़िया👍
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💯👌✌️🤟
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Nyc poem sir ☺☺
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