शहर का दर्द

मुझे छोड़ न जाओ बंधु
हे शक्ति के अनंत सिंधु
तेरे आगत से पूर्व यहां
उत्कर्ष की न थी कोई गंध
हे  अनिकेतन अथक श्रमी
तुम न जाओ यह शहर छोड़
हम धूल धूसरित हो जाएंगे
न यह कंप्यूटर साथ ही देगा
और नहीं ये कल पुर्जे
तुम जाओ हम ऐसे होवें
बिन रसोइया सुंदर सा घर
आन बान सब शान निराली
हाट मॉल सब शोभा आली
बिन तेरे शोभा न पावे
अब हम किसके संग बितावें
कुछ दिन रुको संभल जाएगा
कोरॉना भी चला  जाएगा
मालिक भी सुधर जाएगा
तुम्हारे बिन कहां विकास हो पाएगा
बहुत रोबोट लैपटॉप  देखे
पर जन  शक्ति के बिना ऐसी
जैसी देह बिना आत्मा औ
शिव जी बिना शक्ति
मेरी पुकारती पुकार पे लौट आओ
मुझे आबाद  करने के लिए

-कमल चन्द्र शुक्ल

Published by kamal shukla

जन्म स्थान- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश . इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. एवं एम. ए. (हिंदी) , राजर्षि टंडन विश्वविद्यालय से एम. ए. (शिक्षा शास्त्र), फरवरी 2000 से केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे स्नातकोत्तर शिक्षक के पद पर कार्यरत।

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