
मुझे छोड़ न जाओ बंधु
हे शक्ति के अनंत सिंधु
तेरे आगत से पूर्व यहां
उत्कर्ष की न थी कोई गंध
हे अनिकेतन अथक श्रमी
तुम न जाओ यह शहर छोड़
हम धूल धूसरित हो जाएंगे
न यह कंप्यूटर साथ ही देगा
और नहीं ये कल पुर्जे
तुम जाओ हम ऐसे होवें
बिन रसोइया सुंदर सा घर
आन बान सब शान निराली
हाट मॉल सब शोभा आली
बिन तेरे शोभा न पावे
अब हम किसके संग बितावें
कुछ दिन रुको संभल जाएगा
कोरॉना भी चला जाएगा
मालिक भी सुधर जाएगा
तुम्हारे बिन कहां विकास हो पाएगा
बहुत रोबोट लैपटॉप देखे
पर जन शक्ति के बिना ऐसी
जैसी देह बिना आत्मा औ
शिव जी बिना शक्ति
मेरी पुकारती पुकार पे लौट आओ
मुझे आबाद करने के लिए
-कमल चन्द्र शुक्ल
