

मैं कोरोना ब्याल हूँ। विश्व व्यापी त्रासदी का जाल हूं। मैं काल का कुंचित कपाल विध्वंशकारी शक्तियों की मैं विशाल, मशाल हूं। घूरकर मुझको न देखो अतिथि हूं मैं चीन का । घूमने मै निकल आया साथ जो थे चीन में। मै तो वापस जाऊंगा ही पर कल्याण सोचो विश्व का। आत्मकेंद्रित हो गए । विकास के बियावान का । बेबस मजदूर कराहता अंतहीन दर्द की मझधार में। चन्द्र मिशन है ललक तेरी लाचार जन का ध्यान क्या ? चांद की रिश्ते की धरती पे बेजुबां सा जुल्म ढाया। बेबसी की इस घड़ी में गज़ब तेरी आत्मा दान के इस दौर में भी लूट का ना खात्मा। तुम तो शायद अब तलक भी अभिमान में मदमस्त हो। सर्वोच्च बनने के ही खातिर कुछ भी करने को आश्वस्त हो। क्या बताऊं तात अंबर खुशहाल धरती कांपती परमाणु बम की तलहटी में संपन्न होगा तब गदर।
-कमल चन्द्र शुक्ल
