संचार मीडिया अस्त-व्यस्त बैठी शासन की कठपुतली दर्शन वाचन है नहीं भली सत्ता की प्रतिनिधि अभिव्यक्ति। दो दशक पूर्व के मधुर स्वप्न स्मृतियों के मेरे कानन में ओछी सतही इस राजनीति ने अंतर्मन को झकझोर दिया
2020 का ऐसा भारत कभी न हमने लिखा-पढ़ा घर का देवता भूखों मर जाए दूर विदेशी ठाठ जमाए। उपचारों की गतिक कुशलता अब तक कितनी पाई है जहां पड़े थे विगत सदी में मंथर चाल ही जाई है।
जन संहारक हथियारों की होड़ लगाती दुनिया से जग डूबे तो हम क्यों डूबे, बात विचारों भावों से सोच हमारी बड़ी बलवती जिसकी तुलना नहीं किसी से। पर सोच को कर्म रूप दे दो जन गण के जीवन अर्थों से |
-कमल चन्द्र शुक्ल

