शांतिपथ

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सावधान !भवितव्य मानव !यूं अब
आत्मश्लाघा त्याज्य कर दे
सीढ़ी परम सुख की बनाओ
विश्व ग्राम को साकार कर दो।
प्रगति जाल से दूर होकर।।
सब विश्व जन की चेतना को
जोड़ तोड़ की नीति से परे
समत्व धर्म का रूप दे दो।
तब तुम वहां पे पा सकोगे
केवट  का प्रेम, सबरी की भक्ति
भरत का भ्रातृत्व, उर्मिला का त्याग
अनुसूया का आदर्श, सौमित्र का अनुराग
याद रखो यह धरा है
दो विरोधी ध्रुवों के सामंजस्य की
एक सत्ता को छोड़कर वन
तो दूजा भाई की सम्पत्ति हड़पता है।
अपनी सैन्य शक्ति पर गर्व करने वालों
अठारह पदुम एवं अक्षौहिणी सेना विचारो
क्या तुम कहीं टिक पाते हो
उनके हथियारों की चालों पर।
वैश्विक, मानवता की कुर्सी पर
मानस की लहरों पर सवार होकर
जब तुम दुनिया को देखोगे
तो नंबर एक का सपना देखना बंद कर दोगे,
सत्ता के गलियारों में ,भेड़ों के योग से
विधाता बनने की सोच का त्याग कर
विश्व मंदिर का निर्माण कर लोगे ।
स्वार्थ सुख उन्माद की ज़मीर छोड़
भोग में त्याग की चाशनी मिलाकर
विश्व जनीन एकता एवं नागरिकता
का  निर्माण कर लोगे।
यही हमारा ध्येय हो यही हमारा सिद्ध है।

-कमल चन्द्र शुक्ल

Published by kamal shukla

जन्म स्थान- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश . इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. एवं एम. ए. (हिंदी) , राजर्षि टंडन विश्वविद्यालय से एम. ए. (शिक्षा शास्त्र), फरवरी 2000 से केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे स्नातकोत्तर शिक्षक के पद पर कार्यरत।

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